आसमान बुनती औरतें

भाग (72)

पेलेस पहुँचने के बाद लगातार कुलवीर सोचती रही की अनुमान ही लगाया है अभी तक, ऐसा न हो कि बिजी भी यह कहे कि जब तक हर्षा आगे से आकर नहीं बताती तब तक हम बेफिजूल के कयास क्यों लगाएं फिर सोचती कि खुद के मन में आए इस ख्याल को बिजी से बांटा तो जा सकता है कम से कम इस दिशा की तरफ वह भी सोचे और जब कभी विनय से सामना हो तो अपनी अनुभवी आँखों से देख परख लें।

दोपहर के भोजन के बाद जब गुजारी रसोई घर में अपनी साफ सफाई कर रहा था तो बिजी काउंटर पर बैठी कुछ हिसाब किताब देख रही है, कुलबीर को यही समय उचित लगा बिजी से बात करने का।

“बिजी, आपके साथ एक बात साझा करनी है आप सुनोगे,”… कुलवीर ने बिजी से जानना चाहा कि कोई महत्वपूर्ण काम तो नहीं कर रही है।

“हां पुत्तर जी, कब से तुम्हें इजाजत लेने की जरूरत पड़ने लगी अपनी बात तुम किसी भी समय कह सकती हो, यह तो तुम जानती हो न और अगर ऐसा कर रही हो तो यह बात जरूर है कि कोई महत्वपूर्ण बात करना चाहती हो।”…बिजी नजर उठाते हुए कुलवीर को देखते हुए कहा।

हां बिजी बात तो कुछ ऐसी ही है और मैं खुद कशमकश में हूं इसलिए सोचा यह बात आपके साथ बांट लू अगर सही है तो बहुत अच्छी बात है लेकिन अगर मेरा भ्रम है तो मैं उसे न पालू।”…अपने असमंजस को सुलझाने की वजह से बोली।

“क्या बात है इतनी परेशान क्यों हो रही हो बोल भी दो।”…

“बिजी, आप एक दो बार मिली हो न हर्षा के जो बॉस पहले रह चुके हैं विनय से, आपको कैसा लगता है मैंने बताया था न आपको बहुत ही सज्जन लगता है मुझे तो।”…

“हां, तुम ही ने तो बताया था कि दो दिन पहले भी घर आया था
हर्षा को छोड़ने।”…

“हां बिजी, तभी से मुझे कुछ खटक रहा है उसका तबादला विशाखापट्टनम हो गया है और यह बात जब उसने मेरे सामने रखी तो मैंने हर्षा के चेहरे पर तनाव देखा था मुझे यह बात तभी से खटक रही है कहीं हमारी बच्ची विनय को चाहने तो नहीं लगी।”…

“तो इसमें बुरा क्या है तुम परेशान हो गई हो क्या ?”…

“बिजी आपको तो पता है हर्षा कितनी अंतर्मुखी हैं परिस्थितियों ने उसे वैसे भी पत्थर बना दिया है और मुझे तो हमेशा ही डर लगा रहता है कि वह अपनी जिम्मेदारियों के चलते अपनी जिंदगी को स्वाहा न कर दे।”…

“बात तो तुम्हारी ठीक है ऐसा हो सकता है क्योंकि उसने रिश्तों की ऐसी धज्जियाँ होती देखी है और खासकर अपनी मां की, उसे रिश्तों के ऊपर से तो विश्वास ही उठ गया होगा, यह बात उसकी बात करने के तरीके से भी समझ में आती है, मैं अक्सर सोचा करती थी कि समय आने पर सब ठीक हो जाएगा लेकिन अभी कुछ दिनों से मैं भी इस विषय पर सोच रही हूँ कि हर्षा में कोई बदलाव नहीं आया है अगर तुम्हें उस में कुछ बदलाव दिख रहा है तो यह तो अच्छी बात है तुम्हें हर्षा से बात करनी चाहिए।”…

मैं भी सोच तो रही हूं बिजी लेकिन अंदर से डर लगता है छोटी-छोटी बात दिल पर ले लेती है इसलिए मैं थोड़ा झिझक रही हूँ।”…

“तुम बात करो, अगर वह खुद पर विश्वास नहीं कर रही हो तो उसे उस रास्ते पर सोचने को मजबूर करो, उसको अपने दिल की बात सुनने के लिए कहो, उसे एक रास्ता तो सुझाओं कि वह उस पर चल सके हो सकता है वह इस समय बहुत ही विचलित स्थिति में हो, कुछ समझ ही नहीं पा रही हो तुम उसे थोड़ा समझदारी से समझाओ भी, हो सकता है उसके सामने बात स्पष्ट हो कि वह क्या चाहती है।”… बिजी ने कुलवीर की भूमिका को स्पष्ट किया।

“आप सच कह रहे हो बिजी, मुझे बात करनी चाहिए, सम्भव हुआ तो आज ही रात को बात करती हूँ क्योंकि मैं खुद भी बहुत बेचैन हूँ, मुझसे तो ज्यादा हर्षा परेशान होगी, उसके लिए तो यह नया विषय है, वह समझ ही नहीं पा रही होंगी निर्णय क्या ही ले पायेगी।”… कुलवीर अपनी बेटी को इतना तो समझती है।

“अब तुम सही सोच पा रही हो, तुम्हें बात करनी चाहिए, यह उम्र ऐसी होती है कि एक मार्गदर्शक की जरूरत होती है जिससे अगर वह किसी उलझन में है तो अपनी उलझन कह कर, समझकर सही रास्ता चुने।”…बिजी ने अपने अनुभव की तिजोरी खोली।

“करती हूँ बात बिजी।”…बिजी से बात कर जहाँ कुलवीर को बहुत हल्का महसूस कर रही है, जब हर्षा से बात करेगी तो उसको भी अपनी उलझन से राहत मिलेगी।

क्रमश:..

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