आसमान बुनती औरतें

भाग (74)

डोवर लेन फेस्टिवल कि बहुत धूमधाम रही, बहुत व्यस्तता रही, जब कलाकारों की प्रस्तुति हो जाती तब वह कलकत्ता घूमना चाहता और जिनके प्रोग्राम रह गए हैं वह रियाज में लगे रहते। हर्षा, रानी और स्नेहा अपने-अपने ऑफिस में व्यस्त रही, राखी छुट्टी पर हैं, इसके बाद थोड़ी राहत मिली जब प्रोग्राम खत्म हुआ। एक-एक करके सभी कलाकार वापस चले गए और कोलकाता अपने पुराने स्वभाव में लौट आया, वही स्थानीय लोग, वही सड़कें, वही बाजार और वही ऑफिस, सुबह की वहीं दौड़ भाग और घर वापसी का जुनून सब कुछ सामान्य हो गया।

ऐसा लगता है जैसे एक जलजला आया था और उसमें सब को सराबोर कर के चला गया, उन चार दिनों में कोलकाता में संगीत का महासंगम होता है और सभी संगीत मय हो जाता है लगता है पूरा कलकत्ता संगीत में झूम रहा है बहुत अच्छा लगता है लेकिन जब सब चले जाते हैं तब सुना सा लगता है काम भी कम हो जाता है ऊपर से वापस उसी दिनचर्या में आकर राहत तो मिलती है पर कहीं न कहीं उत्साह का प्रवाह आ जाता है।

जिंदगी को चलाने के लिए इस तरह के समारोह क्या मायने रखते हैं यह बात अब समझ आ रही है अक्सर लगता था कि फिजूल में यह लोग इतना पैसा खर्च करते हैं और क्या मिलता है लेकिन कुछ तो मिलता ही है और जीवन में कुछ-कुछ नया लाने के लिए यह संजिवनी बूटी का ही काम करते हैं इस तरह के प्रोग्राम होते रहना चाहिए और इसे जीवन के महत्वपूर्ण अंग भी मानना चाहिए तभी जिंदगी में रस घुलता है, जिंदगी जिये जाने का नाम नहीं है बल्कि उत्साव मनाने का नाम है।

हर्षा की विनय से अभी कोई ऐसी बात नहीं हुई है कि वह बताएं कि वह बहुत जल्दी में है और उसे ऑफिस की तरफ से बहुत जल्दी ही जाना होगा लेकिन यह बात तो निश्चित है कि जाना तो है पर हर्षा के दिल में यह बात बार-बार गूंज रही है कि विनय न जाये।

इतनी भीड़ भाड़ और व्यस्तता में भी हर्षा का पूरा ध्यान विनय के स्थानतरण पर लगा रहा है, वह अपने को तैयार करने में लगी है कि उसे विनय को अपनी बात किस तरह बतानी है, जब बहुत सोचने पर भी कुछ सूझ नहीं रहा, तब उसने यही सोचा कि क्यों न अपनी सखियों से इस विषय में राय ली जाए और उन्हें बताया जाए कि वह विनय के लिए क्या सोचती है।

क्रमश:..

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