आसमान बुनती औरतें

भाग (75)

चार दिन रह कर रमन वापस चला गया और अगली तारीख निश्चित कर गया कि जब आयेगा तब शादी कोर्ट में ही होगी, रमन नहीं चाहता की शादी धूमधाम से हो, घर परिवार में से किसी को बुलाना नहीं चाहता हालांकि राखी के परिवार वालों ने यह बात रखी कि वह तो चाहते हैं। आप अपनी तरफ से जो करना करें लेकिन रमन सीधे कोर्ट में ही मिलेगा, जब तक रजिस्टर शादी नहीं होती तब तक यह बात अपने परिवार वालों से छुपाकर रखना चाहता है।

यह बात जब सखियों को पता चली तो बेहद खुश हैं एक तरफ यह जरूर था कि राखी की शादी का उत्सव नहीं मना पाएंगे लेकिन इस बात के लिए भी खुश हैं कि रमन बात का पक्का है फिजूल के आडंबर में विश्वास नहीं करता।

रमन के जाते ही राखी ऑफिस आने लगी, राखी अपने ही रंग में इतनी रंगी है कि वह पूरे वक्त रमन और रमन के परिवार की बात करती रहती है हर्षा को भी अच्छा लगता कि राखी खुश होने के साथ-साथ उस परिवार में अपनी जगह बना लेगी, ऐसे में वह यह भी नहीं चाहती कि राखी की खुशी के बीच में वह अपनी बातें बताएं बल्कि वह चाहती है राखी की खुशी पूरी तरह से परवान चढ़े और जब राखी इस खुशी कि अभ्यस्त हो जाए तब अपनी बात रखें।

हर सुबह, दोपहर, शाम रानी और स्नेहा के फोन आते रहते हैं कि कोई नई बात राखी ने बताई क्या ?

“इस रविवार तो राखी को पहले ही बोल देना हर्षा कि मिलना ही है, मिलकर उससे सारी बात पूछना है, हमें भी बहुत उत्सुकता है कि आखिर राखी ने यह जो किला फतह किया है उसको कितनी सेनाओं की जरूरत पड़ी और उसके आत्मबल में कितनी बढ़ोतरी हुई।”…स्नेहा ने हास्य व्यंग में बात कह दी।

“मानना तो पड़ेगा कि राखी ने हौसले का काम किया है और वह अपने लिए एक नई जिंदगी की ओर चलने को तैयार है, सच बेहद खुशी है कि हम सखियों में से एक ने तो जीवन में आगे कदम बढ़ाया है, हां यह दुख रहेगा कि राखी बहुत जल्दी हमसे दूर हो जाएगी।”…स्नेहा जहां खुश हैं तो वहीं राखी के चले जाने से दुखी भी है।

“कोई बात नहीं है कुड़ियों, एक न एक दिन तो हम सब को अपने नए सफर की ओर बढ़ना ही है अगर राखी ने शुरुआत कर दी है तो बहुत जल्दी हम लोग भी आगे बढ़ जाएंगे और यही जीवन है जिसे चलाये रखने के लिए भू-पठारों से गुजरना ही होगा, यह कुदरत का ही दिया हुआ तोहफा है जिसे सभी को कबूल करना है इसमें हमारी मर्जी अगर हम चलाते हैं तो कष्ट के सिवा कुछ नहीं मिलता।”… हर्षा ने भी अपना ज्ञान परोसा।

“अरे वाह हर्षा, तुम कब से इतनी अच्छी समझदारी की बातें करने लगी जो इस विषय में कभी बात नहीं करती थी ऐसा तो नहीं कि राखी के बाद तुम्हारे से ही हमें कोई खुशखबरी मिले।”… स्नेहा ने छेड़ा।

“सोच तो रही हूँ कि तुम्हें भी कुछ बता दूँ ।”…हर्षा ने सहज कह दिया।

“अरे ऐसा क्या कुछ कर लिया, किसी को पसंद कर लिया या कोई आ गया जीवन में हमें तो जरा भी भनक नहीं लगी न तेरे व्यवहार से और न तूने बताया।”… रानी आश्चर्य से बोली।

“अरे पहले खुद पर तो विश्वास कर लूं कि यह सच है और मुझे भी कुछ हो रहा है तब तो बता रही हूँ वरना जब मुझे ही पता नहीं था तुम्हें क्या बताती।”…हर्षा ने अपनी बात रखी।

“फिर तो पक्की बात है इस रविवार मिल रहे हैं राखी के साथ-साथ तुमसे भी हमें कुछ नया रचा गढ़ा सुनने को मिलेगा, अब तो बहुत बेचैनी हो रही है यह रविवार बहुत दूर नहीं हो गया, बीच का ही कोई दिन पक्का कर लो तब मिल लेते हैं।”… स्नेहा अधीर होकर बोली।

“अरे रविवार का ही दिन पक्का रखो, मुझे छुट्टी नहीं मिल पाएगी और आजकल में देर तक ही ऑफिस में रहती हूँ, यह खुशी की बात है कि हमें एक साथ दो दो खुशखबरी की विस्तृत रिपोर्ट मिलेगी।”… रानी खुश होते हुए बोली।

तीनों के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई यहाँ यह तीनों फोन कि लाईन पर है।
क्रमश:..

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