आसमान बुनती औरतें

भाग (76)

इन सब बातों के बीच हर्षा विनय की स्थानांतरण को भी नहीं भूली है यदा-कदा विनय के यदा कदा फोन आये भी तो, अपने मेहमानों के लिए, इस बीच में कभी ऐसा नहीं हुआ कि हस्तांतरण को लेकर कोई बात हुई हो लेकिन हर्षा जानती है कि विनय भी इंतजार ही कर रहा होगा, आज सोच कर ही आई थी कि लंच के बाद खाली समय में विनय सर को खुद फोन लगा कर बात कर लेगी क्योंकि बेचैनी ज्यादा बढ़ने लगी है कि विनय ने क्या सोचा है इस विषय पर बात ही नहीं कर रहा है।

लंच के बाद एकांत मिला तो हर्षा ने मोबाइल पर फोन लगाया इसलिए ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी

“हां हर्षा जी, कहिए क्या बात है ?”…

“सर, अगर आप फ्री हैं तो बात करनी है।”…

“हां मैं फ्री हूँ, बोलिए।”…

“आपका जाना निश्चित हो गया है क्या सर ?”…

“बात तो अभी वही की वही है क्योंकि अभी टाइम है इसलिए।”…

“आपने क्या सोचा है आपका मन बन गया है जाने का।”…

“मैं कुछ सोच नहीं पा रहा हूँ और आपने अभी तक कोई जवाब दिया नहीं है मैंने आपसे ही पूछा था कि मैं जाऊँ या न जाऊँ।”…

“सर, अगर यह व्यवसायिक तौर पर बेहतर है तो जाना चाहिए, इस मौके को छोड़ना नहीं चाहिए।”…

“एक शर्त पर में जाने को तैयार हुआ जा सकता है, आप मेरे साथ चलें।”…

“क्या मतलब है सर।”… हर्षा असमंजस में आ गई यह तो पलट के बाद उसी पर आ गई।

“खुद सोच लो, क्या मतलब है अक्सर हर बात कही तो नहीं जाती ना समझी भी जाती है, जब ना समझ सको तो पूछ लेना मैं बता दूँगा, अभी समय है आप अच्छे से सोच कर बता दें मैंने आपके सामने प्रस्ताव रखा था उस विषय में आप सोच भी रही हैं या नहीं, यह भी बता दें।”… विनय ने अपनी बात दोहरा दी।

हर्षा को एकदम से कोई जवाब नहीं देते बना उसने यह तो सोचा ही नहीं कि विनय पलट के इस तरह का जवाब दे देगा।

“खामोश मत रहिए, कुछ कहिए, बिना कहे कोई भी काम नहीं होता इसलिए पहले अपने आप को तैयार कर लीजिए इस विषय पर आपका जवाब क्या है।”…विनय ने प्रोत्साहित किया।

क्रमश:..

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