ऐ दिल सम्हल जा जरा

(भाग 4)

शिप पर हमेशा समय की पाबंदी होती है फिर भी रघुवीर को जब भी मौका मिलता आदर्शिनी से बात करता। वह अपने काम के नये नये रोमांचित कर देने वाले किस्से सुनाता। आदर्शिनी को भी कभी-कभी रघुवीर की जबरदस्त याद सताती तो वह उससे घन्टों बात करती। कुछ समय से रघुवीर की अनुपस्थिति और उससे जी भरकर बात न कर पाने की वजह से झुंझलाहट होने लगती है। वह अपने से ही तर्क-कुतर्क करती। कभी अपने को लानत-मलामत देती।

“कितनी ईमानदार हो रघुवीर के लिए जो आदर्शिनी पर भरोसा करे।‘ क्या वह भी तो अपनी आँखें दूसरी जगह नहीं लड़ा सकता, क्या वह सुन्दर नहीं है? उस पर लड़कियाँ जान नहीं छिड़कती, सोचते-सोचते आदर्शिनी अपने पर ही नाराज होती, पहले खुद रघुवीर के प्रति समर्पण का भाव जगाओ, तब जाकर रघुवीर से उम्मीद लगाओ, वह अपने ही सबाल-जबाब में उलझी खिन्नता के कगार पर पहुँच जाती।

इस बीच आदर्शिनी की माँ ने आदर्शिनी के लिए घर-वर तलाश लिया, आदर्शिनी की स्वीकृति की उन्हें पूरी उम्मीद थी, लेकिन आदर्शिनी ने मना कर दिया। वह मना तो कर गई लेकिन वह अब रघुवीर से जानना चाह रही है कि क्या वह भी उसका इंतजार कर रहा है ? लेकिन मन का चोर यह बात स्पष्ट पूछने नहीं देता और अपनी इधर-उधर की भटकने की आदत से बाज भी नहीं आता।

रघुवीर अब आदर्शिनी के फोन पर बात करने से परेशान रहने लगा। जब भी बात होती रघुवीर की सहकार्मी बानी को लेकर आदर्शिनी काफी तर्क-कुतर्क कारती। रघुवीर ने अपने जीवन की नाव में आदर्शिनी को सवार किया लेकिन आदर्शिनी की उच्शष्ंखलता,
स्वतन्त्रता ने कभी भी उसे स्थाईत्व नहीं दिया, फिर जीवन को वह जी रहा है उसमें आदर्शिनी का साथ और समर्पण दोनों नहीं मिल रहा है।

रघुवीर ने अपना मूल्याकंन किया और आदर्शिनी को सोचने का समय देना उचित समझा। आदर्शिनी से औपचारिक बातों तक का सम्बंध रह गया।

आदर्शिनी रघुवीर को लेकर अब निश्चिन्त होना चाह रही है, उसे लगने लगा है कि रघुवीर ही है जो उसका जीवन संवार देगा, लेकिन रघुवीर का उखड़े-उखड़े बात करना, उसे खलने लगा है।

रघुवीर दो वर्ष से घर नहीं गया है, जबकि छः माह में घर आया जा सकता है, इन सब बातों से आदर्शिनी का दिल बैठने लगता है अपने
को ही लताड़ती रहती है कि क्यों उसने ही रघुवीर के प्रति ईमानदारी नहीं रखी? प्यार दिमाग से होता है या दिल से? उसका तो दिल दिमाग दोनों ही उथले हैं। दोनों में प्यार करने की गहराई नहीं है, और न ही
समर्पण का स्थाईत्व, क्यों न रघुवीर उससे दूर जायेगा, आदर्शिनी ने अपने पैरों पर आप कुल्हाड़ी मारी है जाने अपने बारे में क्या – क्या साचती रहती।

‘‘आदर्शिनी जी, शादी में आइए जरूर,”… ऑफिस में प्रथम पंडित ने कल अपनी शादी का कार्ड पकड़ाते हुए कहा, तब जाकर जमीन पर आई। उसे अपने रूप का जादू चलने का गुमान एक पल में ही उड़न छू होता नजर आ गया।

आदर्शिनी को इन सब बातों से झटका अवश्य लगा लेकिन अन्तर्मन से वह दुःखी भी हुई, अब उसका मन रघुवीर में अटका रहता, यदा कदा वह फोन पर बात करती तो खुद भी औपचारिक हो जाती, खोद-खोद कर कोई बात सावन से नहीं पूछती, उसे पता है जैसे वह भटकी रहती है, रघुवीर भी तो भटक सकता है, इसमें रघुवीर का क्या दोष।

माँ दबाव डाले हुए है कि आदर्शिनी शादी कर ले, आदर्शिनी अभी टालते रहना चाहती है। इस बीच आदर्शिनी ने नेट की परीक्षा पास कर ली, अब वह कालेज में लेक्चरर बनने के लिए प्रयास करने लगी। वह चाहती है कि एक स्थाई नौकरी हो जाये, फिर जीवन के अन्य पहलुओं पर सोचा जाये।

समय बीतता गया, आदर्शिनी पैंतीस वर्ष की हो गई। माँ ने अब शादी कर लेने की जिद छोड़ दी है। व आदर्शिनी के भाई की शादी के लिए लड़की तलाश रही हैं। आदर्शिनी के भाई संजीव ने भी अपनी पसन्द की लड़की से ब्याह करने की बात कही और फटाफट शादी कर ली है। आदर्शिनी सोचती उससे तो उसका भाई संजीव ही ठीक है,
जिसने अपनी पसन्द को रिश्तें का नाम तो दे दिया।

समय गुजरता गया और ज़िन्दगी की रफ्तार एक ही ही चलती रही।
आदर्शिनी के कालेज से ग्रुप घूमने के लिए जाने वाला है। अकेले वह इस ग्रुप के साथ ही जायेगी, यह विचार कई वर्षों बाद रोमांचित कर गया है। आदर्शिनी को जब इस ग्रुप का संचालन करने का मौका मिला तो उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

यह टूर दरगाह शरीफ हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर जाना तय हुआ। अजमेर शहर की तो आबो हवा ही निराली हैं, बाहुत दूर ही गाड़ी छोड़ दी गाई, पैदल चले तो देखा, दरगाह शरीफ हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज की मजार तक रास्ते में दोनों तरफ दुकाने सजी हैं । दूर से ही गुम्बाद दिखई दे रहा है।बेहद खूबसूरत नज़ारा, रंग बिरंगे रंगों के सामानों से सजा आँगन सा प्रवर्तित हो रहा है।

विशालकाय वंदनवार से सजा मुख्य प्रवेश द्वार है, लौफान की खुशबू से पुरा वातावरण खुशबूनुमा हो रहा है। मन शांती सा अनुभव करता है।

गाईड करना ही था, तलाश शुरू हुई और एक बुजुर्ग व्यक्ति से मुलाकात हो गई, उन्होंने जिस दिलचस्पी से बताना शुरू किया की कोई भी एक पल को ग्रुप से अलग नहीं हो सका।

क्रमश:..

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