ऐ दिल सम्हल जा जरा

(भाग 5)

गरीब नवाज के गुम्बद का अन्दरूनी हिस्सा संगे बिस्ता है जिस को चूने से बनवाया गया है और बाहर का हिस्सा ईंटों से तैयार किया है। डांट पर चूने का मसाला है, इस पर घुटाई का काम है। यह एक
निहायत शानदार गुम्बद है, अन्दरूनी गुम्बद सोने के पानी और रंग-बिरंगे रंगों से खूबसूरती से उकेरे गये हैं जिनका रंग अब फ़ीका पड़ गया हैं।

सफेद गुम्बद पर सोने का बड़ा शानदार ताज है चारों तरफ सुनहरी कलियाँ बनाई गई है। यह ताज नवाब हैदर अली के भाई कलबे अली खान रायपुर ने चढ़ाया था।

मज़ार के अन्दरूनी हिस्से में सुनहरी व लाजौवरी का काम है जो नवाब मुश्ताक अली खान वालिए, रियासत रायपुर ने करवाया था। छत में काशानी मखमल की सुनहरी छत गीरी लगी है। उसमें सोने की जंजीरों से कुमकुमे आवेजा हैं। इस के अलावा चांदी के बहुत से कुमकुमे लगे हैं और दीवार में अन्दर सुनहरी चौखटों में शीशे लगे हैं।

मज़ार शरीफ संगे मरमर का बना है, इसमें संगे मूसा व फिरोजा वगैरह की पच्चीकारी है। मजार शरीफ पर हर वक्त कीमती गिलाफ रहते
हैं। मज़ार के चारों तरफ चांदी का कटघरा है। अन्दरूनी गुम्बद के चारों तरफ सोने के पानी से यह शेर लिखा है –

‘‘ख्वाजा ख्वाजगाहे मोइनुद्दीन‘‘
‘‘अशरफ औलियाऐ बरूहे ज़मीन ‘‘

इसके बाद निजाम गेट है जिसे जनाब उस्मान अली खां साहब वालिए दक्कन ने तीन साल में पूरा करवाया था। इसकी बुलन्दी, महराब की चौड़ाई में एक खूबसूरत और शानदार बारादरी है जिस में नौबत खाना है। यहाँ शहनाई के साथ पांच वक्त नौबत बजाई जाती है।

नक्कार खाना शहजहानी, शहजाँह की बेटी जहाँआरा ने बनवाया है। दरगाह के अन्दर जाने का दरवाजा सुर्ख पत्थर का बना हुआ है, और फर्श संगमरमर का है।

इसकी महराब पर एक प्रार्थना लिखी हुई है दरवाजे पर एक बारादरी है जिस में नौबत खाना है।

बुलन्द दरवाजा सुलतान महमूद खिल्जी और उनके बेटे गयासुद्दीन खिल्जी का बनवाया हुआ है। इसमें संगे सुर्ख लगा हुआ है। फर्श संगमरमर और मूसा का है। बुर्जो पर सुनहरे कलश है और दोनों तरफ सीढ़ियाँ हैं। यह तमाम दरवाजों से ऊँचा है इसलिए इसको बुलन्द दरवाजा कहते हैं।

अहाता चमेली और मस्जिद सन्दल खाने के करीब मर्शिक में एक छोटी सी मस्जिद है। पहले यह कच्चे चूने की थी फिर इसके बाद इसे संगमरमर से बनवाया गया, इसके दोनों तरफ हुजरे है। यहाँ ख़्वाजा गरीब नमाज़, नमाज़ अदा किया करते थे, इसलिए इसका नाम औलिया मस्जिद पड़ा।

अकबरी मस्जिद, अकबर बादशाह ने जहांगीर असरफ औलियाऐ बरूहे ज़मीन, इसके बाद निजाम गेट है जिसे जनाब उस्मान अली खां साहब वालिए दक्कन ने तीन साल में पूरा करवाया था। इसकी बुलन्दी, महराब की चौड़ाई में एक खूबसूरत और शानदार बारादरी है जिस में नौबत खाना है। यहां शहनाई के साथ पांच वक्त नौबत बजाई जाती है

अकबरी मस्जिद, अकबर बादशाह ने जहांगीर की पैदाईश पर बनाई थी, इस का जश्ने पैदाइश हजरत ख़्वाजा गरीब नवाज़ के दरबार में हुआ। इज़हारे तश्क्कुर के लिए यह मस्जिद संगे सुर्ख से बनवाई गई, इसके सहन में एक हौज है। यहाँ का सहन बहुत बड़ा है। मस्जिद के दरवाजे की बनावट फतेपुर सीकरी की मस्जिद के दरवाजे से मिलती है। दोनों कोनों पर संगमरमर की खूबसूरत मीनार है। जुनूबी महराबों पर संगमरमर और लाजोरी तथा लाखी पत्थर की पच्चीकारी
बहुत ही उम्दा फनकारी का नमूना है।

बुलन्द दरवाजे से आगे बढ़कर दोनों तरफ दो बड़ी देगे जीनेदार ऊँचे चुल्हों पर लगी हैं।
मर्शिक देग छोटी और मग्रिबी देग बड़ी देग, जलालुद्दीन
अकबर शहँनशाहे हिन्द ने चित्तौड़गढ़ की फतह में मन्नत के बतौर चढ़ाई थी। इसमें सौ मन चावल पक सकता है। छोटी देग को सुल्तान जहांगीर ने आगरा से लाकर यहाँ लगाया है। इसमें खाना पकवाकर गरीबों को बाँटा गया था।

देगों के सहन में आठ कोनों वाला एक छतरीनुमा गुम्बद बना है। इसमें एक बड़ा चिराग रखा हुआ है। इसे सहने चिराग कहा जाता है। इस चिराग को अकबर बादशाह फतेह चित्तौड़गढ़ से लाए थे जिसे उन्होंने नजरे दरबार ख़्वाजा कर दिया था।

क्रमश:..

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