ऐ दिल सम्हल जा जरा

(भाग 7 )

मस्जिद तिलोक बाई मशहूर गीतकार तानसेन की बेटी तिलोक बाई ने यह मस्जिद बनवाई थी।

हजरत बीबी हाफिजा जमाल हजरत ख़्वाजा गरीब नवाज़ की साहबजादी थी, मजार मुबारक संगमरमर से बना है आपके मजारे मुकद्दस के करीब दो छोटी कब्रे हैं वह आपके साहिबज़ादों की हैं।

हजरत सय्यद बदरूद्दीन शाह मदार अरसे तक अजमेर शरीफ में रहे और इबादते इलाही में चिल्ले किए चिल्ले गाह का गुम्बद और छतरी काबिले तारीफ है।

मकबरा हूर निसा बेगम शाहजहाँ बादशाह की बेटी थी, जहांगीर अपनी इस पोती से बहुत मोहब्बत करता था हूर निसा बेगम ने उन्नीस वर्ष की उम्र में उस वक्त वफात पाई जब जहांगीर अपने कुनबे समेत अजमेर शरीफ में हाजिर था।
जहाँगीर को इसकी वफात से बहुत रंज हुआ, हूर निसा बेगम को हजरत ख्वाजा गरीब नवाज़ के मज़ार के मग्रिबी दफन किया गया संगमरमर का मकबरा बना, किवाड़ भी संगमरमर के बनाए गए हैं मज़ार के तावीज़ पर एक कीमती हीरा जड़ा है मग्रिबी दरवाजा बन्द कर दिया गया है।

सुल्तान-उल-हिन्द ख्वाजा गरीब महबूब-ए-इलाही यादे इलाही और विसाले इलाही से खुश रहने के लिए अनासागर के किनारे पर सदा बहार पहाड़ी की एक ख़ामोश और पुरसुकून घाटी में चले जाते थे यह जगह बहुत खतरनाक थी, जहाँ हज़रत ख्वाजा गरीब गुम रहते थे महराब खान सूबेदार अजमेर शरीफ ने इस मुकद्दस मुकाम पर पत्थर का एक अहाता बनवा कर इस पर एक गुम्बद बनवा दिया जिसके नीचे एक पत्थर रखा है जिस पर गरीब नवाज़ इबादत किया करते थे यही पास में हजरत कुतुब साहब की छोटी चिल्ले की यादगार में बनवाई गई है यह जनाब ख्वाजा नवाज के साथ बने रहते थे।

अहाता नूर में ख्वाज़ा गरीब नवाज के रोजा मुबारक के जुनूबी शिमाली सिम्त में संगमरमर की एक बारादरी है इस अहाते में जो दरवाजे हैं उन पर सोने के कलम लगे हुए हैं।

अकबरी महल के पैरों की तरह यह बाग आज भी अपनी ताजगी, खूबसूरती और कशिश के ऐतबार से अजमेर शरीफ के तमाम बागों में सब से ज्यादा खूबसूरत है दालान खुशनुमा और नहरें बहुत हसीन मंजर पैदा करती हैं।

जहांगीर बादशांह अजमेर शरीफ में दाखिल हुआ तो इसने किला-ए-तारागढ़ के मशिक में चश्म-ए-नूर के करीब एक आलीशान महल बनवाया इस महल में सिर्फ एक दरवाजा और लाल पत्थर का दालान बाकी रह गया है।

बेला और पुष्कर तालाब दोनों अंडे की शक्ल के हैं। पुष्कर के तलाब के किनारे पर अकबर बादशाह ने दालान और इमारतें बनवाई थी जो वीरान पड़ी रहीं अब यह होटलों में बदल गई हैं औरंगजेब बादशाह ने लाल पत्थर की मस्जिद पुष्कर तालाब के किनारे बनवाई थी जो आज भी मौजूद है।

ढाई दिन का झोपड़ा के सिम्त कान बावड़ी बनी है जिस की वजह यह बताई जाती है कि एक बुढ़िया ने सूत की अंटी अलतमिश को नज़र की थी, सुलतान ने मालूम किया कि क्या चाहती हो बुढ़िया ने जवाब दियाकृ मेरे नाम की एक बावड़ी बनवा दी जाय। सुल्तान ने उसकी तमन्ना पूरी कर दी इस तरह यह कान बावड़ी मशहूर, देखने के काबिल जगह बन गई।

क्रमश:..

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