बहर
2122,2122 ,212
आंसुओं को कागजों पर बो गई,
तब हमारी ज़ीस्त पावन हो गई।
उठके जब पलकें लगी गिरने युँ ही,
बर्फ से अरमान जो थे धो गई।
याद आती जा रही है एक-एक,
चूक दिल से ही कहीं तो हो गई।
कुछ लगी थीं धड़कने बढ़ने मेरी,
शब्द के मोती ही झरते रो गई।
कल्पना तेरे बिना जीने की क्या,
एक खालीपन ही धड़कन बो गई।
©A
Post Views:
74