ग़ज़ल
क्यों मेरे साथ चल नहीं देती,
रास्ता क्यों सरल नहीं देती।
दर्द पैबंद की तरह है यहाँ,
यह खुशी भी तो कल नहीं देती।
आ गए थे तुम्हें मनाने को,
क्यूँ मेरे साथ चल नहीं देती।
मेरा विश्वास चूर-चूर हुआ,
बात पर अब क्यूँ बल नहीं देती।
ग़मज़दा है तेरे फ़रेबों से,
जिंदगी क्यों बदल नहीं देती।
यह तो बस वक्त का तकाज़ा है,
जिस्त गुजरा वो पल नहीं देती।
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