ग़ज़ल
2122 2122 22
हम हैं रूठे तो मना लो हमको,
हैं बुरे भी तो निभा लो हमको।
आरज़ू कह रही है ये दिल की,
आज वादों से न टालो हमको।
रूठने से न जां निकल जाए,
साथ चलना है मना लो हमको।
हम मुसाफिर की तरह हैं यारो,
हो सके दिल से निकालो हमको।
ग़मज़दा हम हैं जहां में या रब,
आज फिर आके सँभालो हमको।
हम जहां में न बदलने वाले,
जिस तरह भी हो निभा लो हमको।
दर्द बढ़ने लगा है अब हद से,
टूट जाएँ न बचा लो हमको।
©A