ग़ज़ल
बहर
212,212,212,212
फिर खयालों में उनको बुलाने लगे,
याद में उनके आँसू बहाने लगे।
रात का ख्वाब फिर याद आया हमें,
बंद होठों से भी मुस्कुराने लगे।
रस्में-उल्फ़त निभाते रहे हम यहाँ,
छोड़कर बीच में आप जाने लगे।
मिन्नते कीं बहुत कि ख़ता बख़्श दो,
दिल में खुश थे वो पर भाव खाने लगे।
की बहुत बात नजरों ही नजरों में पर,
सामना जब हुआ मुँह छुपाने लगे।
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