रोज कहानी

रोज-रोज के झगड़े से
हम तो आ गए तंग भाई
कभी किसी से कभी किसी से
बात हमारी न बन पाई
रात दिन हम एक करते
दिल लगा कर खूब पढ़ते
फिर भी रहते सबसे पीछे
हम भी क्या करें भाई
रोज-रोज के झगड़े से
हम तो आ गए तंग भाई।

दादी नानी दोनों सयानी
रोज सुनती नई कहानी
भावनाओं में बह जाते
मन से हम रोज सुनते
समझ में जब कुछ आता नहीं
तंग करते हम उनको भाई
रोज-रोज के झगड़े से
हम तो आ गए तंग भाई।

©A

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