ग़ज़ल

आईना एक ख़ुद को दिखा तो चले,
जन्म-जन्मों का रिश्ता निभा तो चले ।

सोचने क्या लगे हाथ थामो मेरा,
क्यों ख़फा हो ख़ता कुछ पता तो चले।

हमने बुन ली नई श्रृंखलाएँ कई,
पर है उलझन कहाँ कुछ पता तो चले ।

तंज कसते हो हर बात पर किसलिए,
डर है किस बात का कुछ पता तो चले।

हो अगर दिल में थोड़ी जगह आपके,
हम कहां दफ़्न हैं कुछ पता तो चले।

रूठना बेसबब ठीक होता नहीं,
क्या हुआ हादसा कुछ पता तो चले हैं।

है उमस से भरी रात राहत नहीं,
है कहाँ पर हवा कुछ पता तो चले।

एक दरिया समंदर में होता फना,
इश्क की आग का कुछ पता तो चले।

©A

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