ग़ज़ल
प्यार हुआ है सोच के अच्छा लगता है,
उनसे जन्मों का है रिश्ता लगता है।
तोड़ी है खामोशी जब से यह हमने,
ग़म से दामन सहज छुड़ाना लगता है।
पीर उठी है सीने में फिर जाने क्यों,
जाग उठा फिर रोग पुराना लगता है।
बहुत कहा अनकहा है फिर भी शेष बहुत,
परत परत खुलता एक किस्सा लगता है।
दौर नहीं अब जग में भाई-चारे का,
ढूंढने वाले तू दीवाना लगता है।
रिश्ते बदल गए हैं अब तो जीवन में
लम्हा लम्हा तब ही सूना लगता है।
रंज ग़मों की मारी ‘सवि’ इस दुनिया में,
प्यार की माला जपना अच्छा लगता है।
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