ग़ज़ल
उल्फत में तेरी बिकते चले गए,
रहमत पे तेरी मिटते चले गए।
साथ तेरा नजर न आया कभी,
सर इबादत में तो झुकते चले गए।
आफताब लगा, कभी महताब सा,
मिजाज पर तेरे , बहकते चले गए।
शेष अभी है सफर, पड़ाव कई हैं,
रुसवाइयों में भी निखरते चले गए।
प्यार का इक नाम तूने दिया कभी,
मर मिटी जिंदगी, चलते चले गए।
© साधना सोलंकी
वरिष्ठ पत्रकार
शुक्रिया… आभार वृंदा
बढ़िया साहित्यिक सामग्री
चलती रहो, बढ़ती रहो
धन्यवाद