ग़ज़ल

वफ़ा की राह पर पागल चले हैं
सफ़र में बनके हम बादल चले हैं

हवा भी गाँव की बदली हुई है
कि हो जंगल भी अब घायल चले हैं

मोहब्बत में उगी हैं नागफनियाँ
वफ़ा के नाम पर दंगल चले हैं

जवानों की डगर पर दीप रख दो
के सर देने को वह पैदल चले हैं

गुजरते हैं हसीं जिस भी गली से
कई दिल बन के वां बादल चले हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *