ग़ज़ल
हो पास ही हो यह आस दिलाने के लिए आ,
पहरे लगी आँखों को जगाने के लिए आ।
रहकर भी दूर, दूर अब रहा नहीं जाता,
दिल से कोई वादा तो निभाने के लिए आ।
तड़पे है दिल तो अब तड़प ही रह गई बाकी,
फिर से तलब छुअन की मिटाने के लिए आ।
मंजूर है जो शर्त तो किस बात का है डर,
हर बात का यकीन दिलाने के लिए आ।
मंजिल का ठिकाना है न राहों का पता है,
भटके हुए को राह दिखाने के लिए आ।
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