ग़ज़ल

बहर
221,1221,1221,122

है पास ही तू आस दिलाने के लिए आ,
पहरे लगे दिलों पे हटाने के लिए आ।

रहकर भी दूर अब तो रहा ही नहीं,
दिल से किया जो वादा निभाने के लिए आ।

तड़पे है दिल तो अब तड़प ही रह गई बाकी,
फिर से तलब छुअन की मिटाने के लिए आ।

मंजूर है जो शर्त तो किस बात का है डर,
हर बात का यक़ीन दिलाने के लिए आ।

मंज़िल का ठिकाना है न राहों का पता है,
भटके हुए को राह दिखाने के लिए आ।

©A

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *