ग़ज़ल
बहर
221,1221,1221,122
बाज़ार तिरे शहर के बदनाम बहुत हैं,
छोटी सी खुशी के भी यहाँ दाम बहुत हैं।
आँखों में अभी प्यार के पैग़ाम बहुत हैं,
हर शख्स के सर पर यहाँ इल्ज़ाम बहुत हैं।
बनते हैं निगहबान उन्हें देख लिया है ,
पहलू में जो बैठे हैं वो बदनाम बहुत हैं।
रहबर की सुनो बात तो रस्ता भी कटेगा,
गुल ही नहीं गुलशन में ही गुलफ़ाम बहुत हैं।
तू जो न मिले तो न सही ग़म नहीं हमको,
हाथों में हमारे, तेरे पैग़ाम बहुत हैं।
महफूज़ हैं हम आपके घर रहते हैं लेकिन,
पर कतरे तो क्या कैद में विश्राम बहुत हैं।
आते हैं तेरे द्वार पर सज़दे के ख़ातिर हम,
फिर भी मिले झोली में इल्ज़ाम बहुत हैं।
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