ग़ज़ल
बहर
2122,1122,1122,22(112)
याद तेरी आ के अक्सर ही सताती है मुझे,
बह न जाए आँख से आँसू सुलाती है मुझे।
तुझसे रहकर दूर हम दुनिया से जुड़ते भी नहीं,
मेरी तन्हाई तो पल-पल ही रुलाती है मुझे।
है मुझे मालूम तेरी हर तलब मुझसे ही है,
तेरी यह मासूमियत ही तो सुहाती है मुझे।
जब भी चर्चा कुछ हुआ मेरी तुम्हारी बात का,
एक खुशब-ए- इबादत तुमसे आती है मुझे ।
राह में कितने फ़साने हर जुबां पर थे मिले,
लग गई लत प्यार की शीशा दिखाती है मुझे।
©A