ग़ज़ल Gajal

बदला नहीं वो ठोकरे खाकर नहीं बदला,
जिसको न बदलना था वो मरकर नहीं बदला।

वह डर गया है आदमी दौलत की चमक से,
शायद तभी घर का अभी छप्पर नहीं बदला।

शोहरत की बुलंदी पे पहुँच कर भी तो देखो,
हमदम का मेरे आज भी तेवर नहीं बदला ।

मेहनत किया जिसने भी हुआ पार वही इंसाँ,
यूँ बैठ किसी का भी मुकद्दर नहीं बदला ।

लालच तो बहुत आपने जनता को दिखाये,
पर मोह में आ एक भी वोटर नहीं बदला।

©A

उत्तराखण्ड की प्राकृतिक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि…The natural and historical background of Uttarakhand..

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