ग़ज़ल Gajal

तू मेरा इस तरह हुआ कब है,
सुन रहा तू मेरी सदा कब है।

एक बेनूर सी सहर है यह,
उसके दामन की यां हवा कब है।

तुमने रिश्ता तो बेसबब तोड़ा,
मुझसे आखिर हुई खता कब है।

दिल मेरा तोड़ता रहा अक्सर,
फिर भी नज़रों से वह गिरा कब है।

कब से लड़ते हैं दो कबीले यां,
सिलसिला ये भला रुका कब है।

मेरे एहसास को वो क्या समझे,
दिल के जज्बात को छुआ कब है।

मैंने कितना तुझे पुकारा था,
तू भला मोड़ पर रुका कब है।

©A

स्वतंत्रता संग्राम में राहत कार्य सहयोगी महिलाएँ Relief work aid women in freedom struggle

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