जब ऐसा हो As when
जब से दिल में
गढ़ चूकी है
खूंटियाँ
होने लगी अनगिनत
मक्कारियाँ
लगा रहे बेमोल
बाजियाँ
अपनी ही परछाई
से डरने लगी
तितलियाँ
जलाने लगी घरों
को झूठ की
चिंगारियाँ
स्नेह की तो
टूटने लगी
पसलियाँ
हर रिश्तों में
गिर रही
बिजलियाँ
जगह-जगह
बिखरी पड़ी
विश्वास की
किर्चियाँ
सम्बन्धों की डोर
कोने में दुबकी
ले रही सिसकियाँ
अपने ही डुबा
रहे हैं अपनी ही
कश्तियाँ।
©A