जब ठान लो

उड़ान जब भरने की
आहट ही की थी कि
तमाम हौसलों को
जबरदस्त टक्कर
देने को तैयार हो गई
संस्कार की बैठकें
समाज की इज्जत
ऐसा कभी न
हुआ की चौपालें
घर की चोखट
मुंह बंद कर कदम पीछे
करने के इशारे करती
परिवार पर भारी विपदाओं
का कहर बरपेगा का
दिल देहला
देने वाला रुदन
ऐन केन समाज के ठेकेदार
जो खुद ज्ञान से रिते
अनुभव से खाली
ठस्स लकिर के फकिर
जिन्हें आपने गांव के
बाहर की दुनिया देखना
मंजूर है लेकिन
उस दुनिया में प्रवेश
न करने देने का
बेमक़सद का अधिकार
हथिया रखा है
जब उस लड़की ने
इन सब को
परे धकेल रास्ता
बनाया और उड़ चली
नील गगन के पार
आज उसी के नाम से
जाना जाता है
गांव का नाम।

©A

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