ग़ज़ल
उनकी बाहों में हम यूँ समाने लगे,
पल मिलन के हमें फिर सुहाने लगे।
गर नजर आ गई मंजिलें दूर से,
बंद होठों से भी मुस्कुराने लगे।
सारी रस्में निभाने लगे थे हमीं,
छोड़कर बीच में आप जाने लगे।
मिन्नते कीं बहुत अब खता बख़्श दो,
दिल में खुश थे वो पर भाव खाने लगे।
की बहुत बात नजरों ही नजरों में पर,
सामना जब हुआ मुँह छुपाने लगे।
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