जय हो जटाकाली
सुदूर ग्रामीण तलहटी क्षेत्र में
विराजी विघ्नहर्ता शान से
राह बनाती, रक्षा करती
कच्चे पक्के पहाड़ से
नागिन सी बल खाती राहे
मोड़ पर डराते चलती शान से
सूरज तपता कोशिश करता
दूर ही रहता धरा के तेेज़ से
हवा झूमती गाती अलमस्त
बहते झरने सुखकर लकिर से
आलिंगन में ले कर तुमने
उड़ा दी चुनरिया हरे श्रृंगार से
बसुधा मनमानी करती बरसात में
करलव करते पंक्षी जीवन संघर्ष से
बिगड़ी बनाती हर मासूम की
आशा का दीप जलाती अपने दरवार से
दुर्लभ दर्शन हे जटाकाली आपके
शिश झुका नमन करे श्रृद्धा सम्मान से।
©A
भाभी बहुत सुंदर कविता
जी धन्यवाद
भाभी बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद जी