ग़ज़ल

गुजरेगा कठिन दौर जरा देर लगेगी,
आएगी सुखद भोर जरा देर लगेगी।

मुलजिम समझ के उसको गिरफ्तार किया है,
खोजो खता का छोर जरा देर लगेगी।

बिखेरी हैं हर तरफ ही आपदाएँ यहाँ पर,
सँभलेगा वक्त और जरा देर लगेगी।

वह शख्स अपने आप में ही गुम सा रहा है,
पकड़ोगे उसकी डोर जरा देर लगेगी।

मुश्किल बहुत खबरदार राह पे चलना
मंजिल है इसी ठौर जरा देर लगेगी।

©A

4 thoughts on “ग़ज़ल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *