पत्थर नहीं दिल हैं

भाग 1

किसके लिए जी रही है, कौन है तेरा, जिसको अपना माना, छोड़ गया, जिसे दिल ने चाहने का भरपूर प्रयास कर रही है वह आत्मा को धिक्कारने से बाज नहीं आता, फिर भी तेरी आँखें नहीं खुलती, कितनी खुदगर्ज हो गई है तू, अरे अपनी औकात तो पहचान, छिछोरी और दिखावटी हरकतों से कोई किसी का सच में थोड़े ही हो जाता है, सब मौकापरस्त है, दुनिया किसी को नहीं छोड़ती है, अच्छा करो तो, बुरा करो तो।

अपनी आत्मा को संरक्षण दो त्रिवेणी, पहले उसे पहचानों, समझो कि आखिर तुम क्या हो, परमेश्वर या गलती का पुलिंदा, जो चाहे जिसके साथ चाहे तुम्हें तोलता रहे और तुम मूकदर्शक बनी अपनी बर्बादी के साथ-साथ अपनी अंतरात्मा को चोट पर चोट देती जाओ। कितनी गलत बात है, अपने को पहचानो त्रिवेणी, तुम्हारा वजूद है, तुम क्या हो, क्यों तुम अपने से प्यार नहीं कर सकती, क्यों तुम अपने से दुश्मनी नहीं कर सकती, जितनी चाहो उपेक्षाएं करो, दोषारोपण करो, लानत, फटकार लगाओ, पर तुम किसी और को यह हक नहीं दे सकती, कोई भी, किसी भी तरह तुम्हें, कुछ भी कहने का हक नहीं रखता, इतनी दृढ़ता तो तुम में होनी चाहिए।

त्रिवेणी को आज अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा है आज किसी और को दोष देने की जगह वह अपने आप को ही प्रताड़ित कर रही है, अपने आप को फटकार लगाते हुए वह भी तो हल्का ही महसूस कर रही है।

आज फिर धवल कटाक्ष कर गया, यह तो रोज का ही काम हो गया, वह भी क्यों यह सब सहे, गलती कहा है उसकी, परिवार की सहमति से ही तो यह रिश्ता जुड़ा था और पता था पहले से ही कि वह अपने पहले पति के द्वारा छोड़ी गई है, इन लोगों ने भी तो धवन की पहली पत्नी को छोड़ दिया था, कारण जो भी हो, दोनों की स्थिति स्पष्ट थी फिर इन सारी परिस्थितियों में त्रिवेणी ही दोषी क्यों है।

धवल गाहे-बगाहे उसे सुबह ऐसा कुछ कह कर ही काम पर निकलता कि पूरा दिन वह अपने मैं भी उलझी रहती, आज तो हद हो गई कितना कोई सहेगा, शादी होकर आए अभी एक महीना भी नहीं हुआ है, नया जीवन फिर से शुरू करने का साहस जुटाने में ही बहुत समय लग गया था और जब नए जीवन में प्रवेश किया तो इतने ताने सुनकर थक गई है।

क्रमश:..

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