जाये कहा

वह जोगन
थी प्यार की
खिलती बगिया
कितनों ने तोड़े
भावनाओं के
अनगिनत फूल
हर भाव के
टूटने पर
बिखर जाता
मन का बाग
गले से उतरकर
कडवा सा कुछ
सरक जाता है
भीतर
जहाँ मचा है
अफसोस का
दलदल
पीर की सीमा
चूक रही है
कहाँ जाकर
उड़ेल आए
इस किचड़ को
हर जगह लगे हैं
असंख्य ढेर
जहाँ दम तोड रहे
अरमानों के महल।

© अंजना छलोत्रे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *