ढ़ह गया पहाड़

कात्यानी कॉलेज में अपनी पढ़ाई में तल्लीन थी उसी समय उसके घर वाले उसके लिए अच्छा घर वर देखने में मशगूल। माता-पिता तो चाहते ही हैं कि अच्छा खाता पीता परिवार मिले और लड़का सुदर्शन न भी हो तो साथ में अच्छी नौकरी अवश्य हो तब भी चल जायेगा।

पढ़ाई के अंतिम वर्ष में ही तय हुआ कि गर्मियों में जुगल किशोर और कात्यानी कि शादी कर दी जायेगी।

कात्यानी पीएचडी करना चाह रही है, लेकिन माता-पिता हाथ पीले कर गंगा नहाने कि फिराक में है । घर वालों के दबाव में कात्यानी ने शादी कर ली, खुश भी है यह सोच कर कि सुलझे विचारों का लड़का जुगल किशोर के साथ पटरी ठीक-ठाक बैठ जायेगी।

समय के साथ-साथ परिवार में सामंजस्य बैठता चला गया, घर में सभी प्रशन्न, इसी के चलते कात्यानी ने पीएचडी कर ली, अब वह कॉलेज पढ़ाने जाने लगी, समय के साथ दो बच्चे कि मां बन गई कात्यानी ।

धीरे-धीरे गृहस्थी की गाड़ी चलने लगी, सास, ससुर भी उम्र के पड़ाव को पार करते जा रहे हैं, अब उनको बच्चों कि देखरेख करने में परेशानी होने लगी। घर पर आया है, फिर भी उस पर नजर रखना भी गवारा नहीं हो रहा। कात्यानी को बच्चों कि देखरेख के लिए कॉलेज से लंबी छुट्टी लेनी पड़ी।

कहते हैं न समय अच्छे अच्छों के दबे राज खोलता है, यह बात कत्यानी के सामने आने लगी। सासू मां यदा कदा उसे सुनाने लगी कि तुम्हें इतनी आजादी मिली है, जुगल भी तुम्हारे पक्ष में ही बात करता है हमसे पूछो हम कैसे रहे हैं तुम्हारे ससुर के साथ।

“ऐसा क्या करते थे मां जी।”… दो चार बार सुन लेने के बाद कात्यानी ने एक बार पूछ लिया।

“पूछो मत, क्या कहें तुम्हें।”…लम्बी सांस लेती हुई बोली मांजी।

“मांजी कह भी दो, दिल हल्का हो जायेगा।”… कात्यानी ने सहलाने के लहजे में कहां।

“अरे बहु, तुम्हारे ससुर तो हम पर हाथ छोड़ देते थे।”…वह कड़वा सच कह गई।

“क्या? … कात्यानी जड़ हो गई, इतने ऊँचे विचार रखने वाले ससुर जी कि इज्जत उसकी नज़रों में एक झटके में धराशाई हो गई।

“तुम्हें क्या बताये, हमारी सास भी महा जख्खड थी, जब देखों उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ा देती और तुम्हारे ससुर का क्या कहना दना दन धुनक देते।”… कराह ही तो उठी थी मांजी।

भौचक हुई कात्यानी इस प्रसंग को सुनकर सुन्न हो गई, प्रतिष्ठित पढ़े-लिखे परिवारों में यह सब उसने तो अपने मायके में ऐसा कुछ देखना तो दूर सुना भी नहीं है । कात्यानी आगे नहीं सुन पाई, उठकर कमरे में आकर लेट गई। क्या यह कहावत इस परिवार पर लागू नहीं होती कि खाने के दांत कुछ और दिखाने के कुछ और । वह जब से इस घर में आई है ज्यादातर पढ़ाई के लिए बाहर जाती रही फिर नौकरी लग गई, ज्यादा समय घर पर तो रही ही नहीं, पता नहीं उसके आने के बाद भी कहीं मांजी को यह यातना तो झेलनी नहीं पड़ी।

कात्यानी बेचैनी से करवटें बदलती रही इतना घोर अनर्थ वह तो बर्दाश्त नहीं करेगी और न ही मांजी पर यह अत्याचार होने देगी।

कात्यानी इस गुथ्थी को कैसे सुलझाये कि फिराक में थी कि
एक सुबह नीचे से ससुर जी के चिल्लाने कि आवाजें आ रही है, मांजी को उनके मायके वालों को और उनके होने पर उलाहना दिया जा रहा है।

मांजी धीरे बोलने के लिए कह रही होगी, क्योंकि ससुर जी कि आवाज सुनाई दी…”मैं किसी से नहीं डरता।”

कात्यानी ने इतने दिनों में यह ठान लिया था कि अब यह खत्म ही होना चाहिए, जुगल किशोर को कहाँ कि जाकर देखो तो वह अनसुना कर ऑफिस के लिए तैयार होने चला गया अब तो ओर भी आश्चर्य हुआ कि किस तरह का बेटा है यह।

नीचे से आवाजें आनी बंद हो गई सासू मां बहुत देर के बाद रसोई में आई तो आँखें लाल है, उन्हें बहू के सामने इस तरह सुनना बेइज्जती महसूस हो रही होगी, कात्यानी अनुमान बखूबी लगा सकती है जब उसे इतना बुरा लग रहा है तो जिसे कहाँ गया है उसे कितना बुरा लग रहा होगा।

पूरा दिन मांजी उससे झेपती ही नजर आई । कात्यानी भी कुछ कहने कि स्थिति में नहीं है, न पूछ पा रही है कि क्या हुआ है। साठ
वर्ष कि मांजी अपनी क्षमता से अधिक ससुर जी का काम करती रहती है, जहाँ तरस आ रहा है, वहीं खींच भी होने लगी कि विरोध क्यों नहीं किया ?

मांजी को अपने लिए आवाज उठाने को तैयार करने के लिए कात्यानी को काफी समय लगा। उनके अंदर इतने बरसों से डर कि मोटी परत जमी बैठी है, जिसे कुरेद-कुरेद कर निकालने में वक्त लगा।

धीरे-धीरे मांजी कात्यानी की बातों से सहमत होने लगी । इस उम्र में ससुर जी को मांजी कि ज्यादा जरूरत है, एक सहयोगी के रुप में, न कि मांजी को। दस वर्ष छोटी है मांजी, ससुर जी से । दुनिया भर कि बीमारियों से ग्रसित है और आज भी पुरुष होने का दंभ भरने से नहीं चूकते।

“मांजी, यदि आप तैयार हो तो एक योजना है मेरे पास उस पर अमल करके देखते हैं।”… कात्यानी ने एक दोपहर मांजी से पूछा।

“क्या करना होगा बहू।”…

“ज्यादा कुछ नहीं आप दो दिनों के लिए मेरी मम्मी के घर जा कर रहना, हम यहाँ यह बात किसी को नहीं बतायेंगे।”… कात्यानी ने मांजी के चेहरे को देखा, जहाँ धीरे-धीरे डर कि बदली छा गई है।

“नहीं बहू, फिर वह घर में घुसने नहीं देंगे, बहुत अड़ियल हैं।”… मांजी तौबा करते हुए बोली।

“मैं, आपके साथ हूँ मांजी, एक बार हिम्मत करके देखे कद्र होती है या नहीं।”… कात्यानी ने हौसला अफजाई की।

“लेकिन बहू मुझे डर लग रहा है।”…

“आप हिम्मत दिखाये, मैं यह अब आगे आपके साथ ऐसा होने नहीं देना चाहती मांजी।”… कात्यानी दृढ़ निश्चय है।

बेमन से ही सही मांजी तैयार हो गई । कोई रूठा राठी नहीं,न कोई झगड़ा हो रखा है इस समय, घर सामान्य है।

हंसी खुशी के माहौल में दोपहर में ससुर जी बाजार तक गये। यही मौका कात्यानी ने चुना क्योंकि इस समय जुगल किशोर भी टूर पर गया हुआ है । मांजी को अपनी मम्मी के घर दो दिनों के लिए भेज दिया, मुख्य सड़क के पार मम्मी गाड़ी लेकर आ गई है।

ससुर जी शाम तक इंतजार करते रहे फिर आवाजें देने लगे

“आदी, तुम्हारी दादी को भेजना बेटा।”.. उन्होंने पौते को आवाज लगाई।

“पिताजी, मांजी तो नीचे ही होगी।”… कात्यानी ने जवाब दिया।

“यहाँ तो नहीं है, सब्जी लेने गई है क्या ?”…

“मुझसे तो कह कर नहीं गई।”…कात्यानी ने अनभिज्ञता दर्शा दी।

“ऐसा तो नहीं करती है, कहाँ चली गई।”… पिताजी के स्वर में चिंता साफ नजर आ रही है।

“आ जायेगी पिताजी, सत्संग में बैठ गई होगी कोई बात नहीं, मैं आपका खाना लगा लाती हूँ।”… कात्यानी बोली।

“हां ले आओ।”…स्वर फिक्र से लबरेज है।

“पिताजी, खाना खा लीजिए।”…वह अनमने मन से खाने बैठ गये।
ससुर जी किसी सोच में डूबे बैठे हैं, कुछ देर बाद कात्यानी कुछ और लाऊ का पूछ गई।

दो मंजिला मकान है नीचे सास-ससुर रहते हैं ऊपर रसोई और कत्यानी परिवार सहित। बाबूजी का रात दस बजे सब्र का बांध टूट गया।

“बहू, पता करो कहाँ गई तुम्हारी सास।”… स्वर मैं खींच के साथ-साथ चिड़चिड़ाहट भी है।

“जाने दो न पिताजी, वैसे भी कौन सा वह आपको सुकून दे रही थी आ जायेगी, जब आना होगा।”… कात्यानी ने कड़वा बोल बोला।

“कैसी बात कर रही हो बहू।”… पिताजी झुंझला कर बोले।

“और क्या पिताजी ,आप कि मार और डांट तमाम उम्र खाती रही हैं, उब गई होंगी, इसलिए चली गई।”… कात्यानी ने लापरवाही से कहां।

“बहू, अभी तो कोई लड़ाई भी नहीं हुई, फिर क्यों, कहाँ चली गई, तुम क्या कह रही हो यह सब।”…उन्हें अनुमान नहीं था कि बहू को पहले कि बातें पता होंगी।

“ठीक ही कह रही हूँ पिताजी, आप फिक्र क्यों कर रहे हैं गई होंगी मामा जी के घर आ जायेगी।”… कात्यानी ऊपर से ही जवाब दे रही है वह भी जानती है कि सामने जाकर बोलने कि हिम्मत उसमें भी नहीं हैं।

“जुगल, को फोन कर पूछो उसे कुछ बता गई होंगी।”..

“पिताजी, आप फिक्र न करें, यह तो इस समय ट्रेन में होंगे, फोन लगाया था, नेटवर्क नहीं मिल रहा है।”.. कात्यानी झूठ पर झूठ बोले जा रही है।

बहुत देर तक बड़बड़ाने कि आवाजें आती रहीं, “ऐसा करती नहीं है, सच में दिमाग तो नहीं फिर गया, क्या सोच कर गई, आने दो फिर बताता हूँ, फिर कुछ देर बाद खुद ही कह देते, नहीं… नहीं कुछ नहीं कहूँगा, उससे आगे से कभी झगड़ा नहीं करूँगा, कुछ नहीं कहूँगा,”… कात्यानी सब सुन रही है।

रात बारह बजे जाकर देखा तो थक कर सो गए हैं पिताजी,
कात्यानी को नींद नहीं आई। डर भी है कि पिताजी ज्यादा परेशान न हो जाये, सुबह चार बजे ही नीचे खतर पटर सुनाई दी। कात्यानी भी उड़ बैठी चाय बना ले गई।

“आ गई तुम्हारी सास।”… पिताजी ने पूछा।

“नहीं पिताजी।”…

“कहीं कट मर न गई हो।”… झुंझलाकर बोले।

“ऐसे क्यों कह रहे हैं आप, आ जायेगी।”…कात्यानी आश्वासन देने के लहजे में बोली।

“ऐसा तो कभी किया नहीं, पता नहीं क्या सूझा।”… पिताजी कह रहे हैं कात्यानी सारा काम यथावत करती रही और नजर जमाये रखी कि क्या मन स्थिति है, डर बढ़ता जा रहा है अब उनके चेहरे पर।

खाने से निपटकर दोपहर में वह भी जाकर लेट गई और आगे के प्रोग्राम के बारे में सोचने लगी कि क्या करना है।

“जुगल को पूछा क्या बहू, कब तक आ जायेगा,”… दोपहर में आवाज लगाकर पूछा पिताजी ने।

“शाम छः बजे तक आ जायेगे पिताजी, हां पूछा है उनसे भी कुछ नहीं कहाँ है मांजी ने,”.. कात्यानी झूठ फिर बोल गई।

अब इस नाटक का अंत तो करना ही था जुगल के आने के पहले वरना स्थिति बिगड़ सकती है। पांच बजे करीब मांजी को बुलवा लिया मम्मी छोड़ गई, पैदल चलकर घर आ गई।

कात्यानी उनके आने के पांच मिनट पहले, बच्चों को लेकर नीचे पहुँच गई। मांजी आई, चुपचाप आकर पलंग पर बैठ गई, बच्चे दादी से लिपट गये, पिताजी चुपचाप देखे जा रहे हैं । सासू मां को उदास ही दिखना है यह तय था। कात्यानी दौड़ कर गई पानी, चाय ले आई।

“कहाँ गई थी मांजी,आपके बिना हमारा बुरा हाल हो गया था, आपका बेटा भी यहाँ नहीं है, पिताजी बहुत परेशान हो गये थे मांजी,”… कात्यानी रुदन करती सी बोली।

दोनों सांस बहू ने आँखों आँखों में इशारा किया, अब बोलने कि बारी मांजी की है।

“क्यों बहू, क्यों परेशान थी मैं तो वैसे भी तमाम उम्र बोझ ही रही हूँ, मेरी किसे जरूरत पड़ गई, अच्छा होता मर खप जाती,”… मांजी यह ससुर जी को सुना रही है।

“ऐसा न कहे मांजी, आपके बिना हम अधूरे हैं,”… कात्यानी ने भी अपना रोल अदा किया।

“कैसी बात कर रही हो, इन बच्चों का ख्याल नहीं आया तुम्हें, बिना बताये कहाँ चली गई थी,”…पिताजी अब तक चुपचाप बैठे थे, मांजी जब कुछ नहीं बोली तो अपना न कहकर बच्चों कि आड़ ले ली।

मांजी अभी भी चुप लगाये रही।

“कोई ऐसे घर से जाता है क्या ? तुम्हारे बेटे को क्या जवाब देता मैं।”… पिताजी कि आवाज में आद्रता आ गई, वह सच में अंदर से हिल गये हैं।

मांजी कुछ नहीं बोली।

“अच्छा चलिए मांजी, ऊपर चलो, कुछ खा लो और आराम करो, बाद में बात करेंगे,”… कात्यानी ने मांजी कि बाह पकड़ कर उठा लिया।

पिताजी देखते ही रह गए, शाम को जुगल भी आ गया, पिताजी को खाना कात्यानी देने गई।

“तुम्हारी सास ने खाना खा लिया।”… पिताजी ने पूछा।

“अभी नहीं खाया, खिला दूँगी मैं।”… कहती हुई कात्यानी वापस आ गई।

उस रात मांजी ऊपर ही सोई । घबराहट तो सास बहू दोनों को है लेकिन धैर्य रखना ही है, कात्यानी नहीं चाहती कि उसके बड़े होते बच्चों के सामने दादा दादी के लड़ने झगड़ने कि तस्वीर आये।

दूसरे दिन भी खाने तक मांजी ऊपर ही रही, अब तो छटपटाहट कि बारी पिताजी कि हो गई । उन्हें तो लग रहा होगा कि इतनी हिम्मत कैसे कर रही है कि अभी तक उनके पास नहीं आई । कात्यानी चाहती भी यही है कि विछोह का दंश उन्हें डस ले ताकि मांजी कि अहमियत वह समझ जाये।

दोपहर में चाय लेकर मांजी गई । कात्यानी कान लगाये रही कोई आवाज नहीं आई, बातें करने कि सामान्य आवाजें आ रही हैं उसमें भी पिताजी कि ही आवाज सुनाई दे रही है।

दो घंटे बाद मांजी ऊपर आई, कात्यानी को गले लगा कर रो दी।

“क्या हुआ मांजी।”.. कात्यानी उनकी पीठ सहलाते हुए पूछा।

“आज पहाड़ ढ़ह गया, पत्थर सा दिल पिघल गया।”… मांजी रोती हुई बोली, मगर खुश भी है।

“मैंने, पढ़ लिया है, तुम पढ़ो।”…अपना हाथ आगे कर दिया यह एक पर्ची है जिसे वह कात्यानी को दे रही है ।

कात्यानी कि उत्सुकता चरम पर पर्ची खोली पढ़ी, अपने सारे गुनाह कि माफी मांगते पिताजी आगे कभी भी दूरव्यवहार नहीं करेंगे कि कसम खा रहे हैं और आग्रह कर रहे हैं कि आगे कभी ऐसे छोड़कर मत जाना।

कात्यानी ने खुशी से मांजी को गले लगा लिया, दोनों के आँखों से आँसू बह निकले।। थोड़ा सा कष्ट और ढेर सारी खुशियाँ बटोर ली। सच अगर नारी, नारी कि पीड़ा समझने लगे तो सास बहू का रिश्ता ममत्व से भरा हो सकता है, पहल करने और सहयोग करने कि जरूरत है।

अंजना छलोत्रे ‘सवि’
भोपाल मध्यप्रदेश
©A

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