दिलेरी
“अम्मा कंजूसी बहुत करती हैं , सब कुछ है पर हमेशा प्रवचन ही देंगी , यह कपड़े इतने दिन चलाओ, अनावश्यक खर्च मत करो, चिढ होती है, बेटा बहू रहते हैं शहर में, पर यह सारा रौब मुझ पर ही झाड़ती हैं । जब मरेगी बुढ़िया साथ ही ले जाएगी।” रामरती अक्सर बुदबुदाती।
जबसे अम्मा के यहाँ काम कर रही है, अम्मा और उसके बीच में छत्तीस का आंकड़ा रहता है फिर भी पता नहीं क्यों, उनके घर का काम छोड़ा भी नहीं जाता, स्नेह की ठंडी छाँव जो उनके आँचल से मिलती रहती है।
आज अम्मा, कपड़े, कंबल, अनाज एक खाकी कपड़े पहने व्यक्ति को बुला कर दे रही है।
“अम्मा, घर लुटाने का इरादा है क्या, कौन है जिसे ये सब दे रही हो,”
रामरति से नहीं रहा गया,आज अम्मा को हो क्या गया है।
” रामरती,जानती भी है, यह सेना का जवान है, तुझे क्या पता,आपदा आई है, उन्हीं लोगों के लिए यह सारा सामान दे रही हूँ, जा अंदर से कुछ बर्तन भी ले आ, जल्दी कर,” अम्मा दौड़-दौड़ कर याद आती चीजें देती जा रही थी।
रामरती कंजूस अम्मा की दिलेरी देखकर दंग है।
© अंजना छलोत्रे
रामरती कंजूस अम्मा की दिलेरी देखकर दंग है। ऐसी कहानियां लोगो को एक अच्छे साहित्य के लिए प्रेरित कर सकती है।
धन्यवाद