निश्चित मंजिल Fixed floor

लेम्पपोस्ट की पीली रोशनी सड़क के चारों ओर फैली और उसमें छन कर आती किसी पुराने खींची हुई फोटो हो जाने पर जो कलर पीला हो जाता है उस तरह की लग रही है, अपनी बालकनी में बैठी रागी यह सोच रही है आज उसके जीवन के छत्तिस वर्ष पूरे हुऐ हैं अब अपने जीवन के बारे में विस्तार से सोचना होगा, जो मंजिल उसे चाहिए थी वह पा ली है, अब एक साथी तलाश कर ही लेना चाहिए।

अभी लाइन में पांच ऐसे प्रस्ताव रखे हैं जिन पर गौर कर सकती है। वह संयुक्त परिवार से है और उसने कम उम्र में शादियों के परिणाम देखें हैं।

इसीलिए उसने सोच रखा था कि जब तक वह मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हो जाती, तब तक शादी जैसे बंधन के लिए तैयार नहीं होगी, खुद का बनाया अपने लिए एक घर उसे जरूर चाहिए।

सुलभ का प्रस्ताव उसे ठीक लग रहा है, इसने भी अभी तक शादी नहीं की है और शायद तलाश जारी है यह तो पता नहीं कि क्यों नहीं की ।

घर के सभी सदस्य लगातार प्रयास में है कि मैं किसी एक रिश्ते के लिए हां कह दूं, रागी ने भी निश्चय किया कि सुलभ से मिल लिया जाए और आमने सामने बात हो जाए तो ज्यादा ठीक होगा, निश्चित दिन उसने सुलभ को अपने शहर बुला लिया।

कैफे में दोनों की मुलाकात हुई, एक दुसरे की फोटो देख चुके हैं इसलिए उन्हें कोई विशेष उत्सुकता भी नहीं है, गम्भीरता दोनों का गहना बनी है।

बहुत सी बातें हुई अंत में रागी ने उससे स्वीकृति लेकर एक सवाल किया।

“अभी तक शादी न करने की वजह क्या रही है अपनी मर्जी थी या प्यार में असफल हुए हैं,”…रागी ने पूछा।

थोड़ी देर को दोनों के बीच में मौन पसरा रहा, सुलभ मंद-मंद मुस्कुरा रहा है और शायद शब्द तलाश रहा है कि वह कहाँ से शुरू करें।

“हम उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहाँ हमें अपनी बातें स्पष्ट रखनी चाहिए जो अतीत है उसे स्वीकारना ही होगा और एक दूसरे पर विश्वास करना भी होगा…. सुलभ ने सहजता से कहा।

“आपकी बात सच है, क्योंकि हम अपने निर्णय खुद ले रहे हैं, हमारे बीच ऐसा कोई नहीं है जो बाद में हमारी तरफदारी करें, इसलिए बेहतर है कि हम एक दूसरे को अपनी सारी बातें शेयर करें,”… रागी ने भी स्पस्ट किया।

“मेरी नौकरी लगते ही मैं परिवार को एक सामान्य स्तर तक लाने के लिए इंतजार करता रहा और मेरा एक ही लक्ष्य था कि अपने परिवार को उपर उठाना, जब मैं इन सब बातों से फ्री हुआ तभी मैं यह सोच सका कि मुझे अब अपना घर बसाना चाहिए, रही बात दिल लगाने कि तो घर की जिम्मेदारी के चलते कहीं दिल लग नहीं सका,… सुलभ ने सहजता से अपनी बात कह दी ।

“मेरे, साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है, मैंने, अपने संयुक्त परिवार में नई बहू को अपनी जगह बनाने के लिए जद्दोजहद करते देखा है इसमें शुरू से मन में था कि अपने पैरों पर खड़े होकर अपना एक ठिकाना निश्चित करु, तभी मैं जीवन में आगे बढ़ने का सोचूँगी,”… रागी ने भी अपनी बात रखी।

“क्या आपको कभी किसी से प्यार नहीं हुआ ?”… सुलभ ने पूछा।

“नहीं हो पाया, घर वालों ने ढेरों रिश्ते देखें भी ओर मुझे दिखाये भी, लेकिन मैं मानसिक रूप से तैयार नहीं हो सकी, अब तो घर वालों ने रिश्ता खोजना ही बंद कर दिया है सब मुझसे खींजे हुए बैठे हैं,”… रागी ने भी खुल कर अपनी बात रख दी।

“आश्चर्य हो रहा है मुझे, ऐसी ही कुछ स्थिति मेरी रही है मेरे साथ तो रिश्तों की भरमार रही, बहुत दबाव भी आया लेकिन मैं ने ही रिश्तों को ठुकराया, मुझे मालूम था कि नई जिम्मेदारी के आते ही मैं अपने परिवार को एक सामान्य जीवन देने में सक्षम नहीं रह पाऊँगा,”…सुलभ ने भी सहजता से बता दिया।

“मुझे तो खुद सक्षम होने ने रोक रखा था,”…रागी बोली।

“वजह जरूर हम दोनों की अलग-अलग रही हैं लेकिन शायद मकसद हमारा बहुत अच्छा रहा है, मेरा मानना है कि मैं ऐसे कोई विशेष खानदान से नहीं हूँ कि मेरी पीढ़ियाँ राज करने वाली है, सभी शादी करते हैं, मैं थोड़ा सा रुककर कर लूँगा तो किसी का कुछ बिगड़ेगा नहीं, लेकिन इससे मैं अपने परिवार की स्थिति का सुधार कर पाऊंगा, तब ही नये रिश्ते में सुकून भी मिलेगा, वरना बेचैनी भरी जिंदगी मुझे कहाँ सुख देती,”…सुलभ ने कहा।

“बहुत अच्छा सोचा आपने, मेरा मानना है कि मैं जिस से भी रिश्ता बनाऊँ, उस पर बोझ न बनूं, नया संसार स्वछन्द, और तनाव रहित रहे, जहाँ एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान हो,”…रागी ने कहाँ।

सुलभ ने रागी के हाथ पर अपना हाथ रख दिया, यह आश्वाशन हैं कि हम साथ रह सकते हैं, रागी के चेहरे पर तृप्ति सी मुस्कान है।

दो स्वतंत्र विचार के लोगों का रिश्ता कितना मजबूत होगा जहाँ हर चीज सुलझी हुई है, जहाँ एक दुसरे से कोई कमतर नहीं है, दिल और दिमाग दोनों ही कुंदन, ऐसे में नये परिवार का भविष्य उज्जवल होगा ही, इस बात का आश्वाशन उन दोनों ने पहले ही दे रखा है।

©A

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