पत्थर नहीं दिल हैं

भाग 3

इतने दिनों में ही त्रिवेणी को धवल से लगाव तो दूर अपनापन भी नहीं हुआ, ऊपर से इस तरह का रुखा बोल देना उसे धवल से अलगाव ही महसूस करा रहा है। दोनों तरफ से ही कोई उत्साह नहीं है, सामंजस्य बिठाने का भी कोई प्रयास नहीं है क्योंकि शादी हुई है तो साथ रह रहे हैं इसलिए एक दूसरे की भावनाओं को नजरअंदाज करना ही लगता है मुख्य उद्देश्य है।

शादी के बाद एक बार ही मायके गई थी त्रिवेणी, सुबह गई और शाम को आ गई किसी से कुछ नहीं कह पाई, लेकिन मां उसके चेहरे के भाव से बहुत कुछ समझ गई थी। बोली कुछ नहीं, अनुभवी आँखें समय के स्वभाव को अच्छे से जानती हैं और बड़े से बड़े घाव को भरने का मौका समय ही तो देता है, मां इंतजार में है त्रिवेणी का भी यह घाव भर जाएगा।

त्रिवेणी ने एक महीने की छुट्टी ले रखी थी अब उसने अपने ऑफिस में ज्वाइन करने का सासू मां से पूछा और नौकरी पर जाने लगी, घर के तनावपूर्ण माहौल से उसे कुछ राहत मिली और अपने पुराने दोस्तों, सहकर्मियों के साथ उसे वहीं सब मिला जो एक बार पहले भी छोड़े जाने पर मिला था, जीवन में कुछ नया भी हो सकेगा का आभास हो रहा है फिर से खुद के लिए जी जाने का मन कर आया।

घर से निकलते ही त्रिवेणी के सोच का दायरा बढ़ गया और उसने भी इन सब बातों पर गौर करना बंद कर दिया। ऑफिस की जिम्मेदारियों में तथा साथियों की अपनी अपनी परेशानियों में वह अपनी परेशानी को बहुत कम आकने लगी।

बिना वजह जब शिद्दत से किसी को चाहो और इसके बाद जबरदस्त धोखा मिले तो कोई भी इंसान होगा जड़ से ही हिल जाएगा और त्रिवेणी ने अपने कैरियर पर इतना ज्यादा ध्यान दिया कि उसने आसपास की किसी भी बातों पर कोई गौर नहीं किया, जहाँ माता-पिता ने शादी की, बस उसी से प्यार कर बैठी और यहीं से जब उसे धोखा मिला तो वह अपने आप को संभाल भी नहीं पा रही थी, मूकदर्शक बनी अपने आप से ही अंदर तक लड़ती रही, कहाँ चूक हो गई उससे, फिर यह उसी के साथ क्यों ?

पहली ससुराल में भी माता पिता के दबाव में बेटे की जबरदस्ती शादी का परिणाम त्रिवेणी भुगत रही है, और वह नादान जाने किस-किस दोषारोपण की शिकार हो गई। त्रिवेणी ससुराल से अपने पर दाग लगा कर लौट आई। किसी ने भी अपने सपूत से नहीं पूछा कि वह घर से बाहर किसके साथ संबंधों में रहता है और जब बात खुली तो दोष त्रिवेणी पर मढकर कर संबंध विछेद की बात तक पहुँच गई।

त्रिवेणी तो सक्ते में ही थी उसे हमेशा लगता वह कहाँ गलत है, उसका दोष क्या है वह जब कभी अपने आप को टटोलती तो लगता कि प्यार करने के पहले उसे पूछना चाहिए था, इतनी भोली, इतनी नादान कैसे हो गई वह जिससे शादी की उसी से प्यार कर बैठी।

त्रिवेणी अपने जीवन का कुछ निर्णय ले पाती, कुछ सोच पाती कि माता पिता ने उसके उज्जवल भविष्य के लिए और आने वाले समय में अपने भाई भाभी के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए, उसे पुनः विस्थापित करने का सोचा और धवल से कोर्ट में शादी करा दी, चूंकि दोनों पक्षों में कोई उत्साह नहीं था एक दूसरे को संभालना और शादी जैसे मामले में समाज में जो अपमान का घूंट पीया है, उसे भरने के लिए दूसरी शादी की जितनी जल्दी होती है बस वही जल्दी त्रिवेणी के साथ भी हुई।

क्रमश:..

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