पलाश रंगने चले

फागुन ने जब
ली अंगड़ाई
घर आंगन
महके चहके
गलियाँ चौपाल
ताल तलैया
झांझ मंजीरा
हुरियारे गाते बतियाने
पंगडंडी राह निहारे
आये मस्तानों
की टोली
झूम झूमकर
लहराती
बरगद की
टेहनी निगोड़ी
करलव करते
मौन हुए हैं
उसमें रहते
सब पक्षी
लाल रंग के
रहस्य से चुप हो
दुबकी सहमी जोड़ी
अलवेली हवा हुई
गली गली बावरी
गुलाल उड़ाते
सूर्ख पलाश को
रंगने चले मन मोहने
मन मन फूले
कचनार सखी।

©A

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