(1) मेरे घर आना जिंदगी Come to my home life

अपराधी के गृह ग्राम में सूचना पहुँचाई गई, कि रतन नाम का युवक जो हत्या का आरोपी है, आज पुलिस द्वारा पकड़ा गया है उसे गिरफ्तार कर दूसरे दिन जेल भेज दिया जावेगा। खबर सुनकर माँ का दिल दहला।

हत्या करके नदारद रतन पुलिस की दबिश में धर दबोचा गया, पुलिस वालों ने उसे ले जाकर बंदी गृह में कैद कर दिया, अब आगे की कार्यवाही होना है।

पड़ोसियों तथा परिचितों से नजर बचाता रतन कभी-कभी अपनी माँ केश्वर के आंचल में प्यार और राहत पाने चला आता था, कहता था…”माँ मैं निर्दोष हूँ।”

बेटे से मिलने की तीव्र लालसा, केश्वर के बदहवास में बहकते कदम, अपने बेटे से मिलने की ललक में तेज गति से बढ़ चले। न दिल, न दिमाग, न कदम, न राह, न सुकून, न घबराहट, न यादें, न पलकें झपकतीं वो नासूर बने शब्द मानो कपड़ों को चीर कर छाती में भेद दिए गये हो, हताशा लिये थाने की परिस्थितियों, वर्दी का भय, न खुद का होश, कुछ भी केश्वर के समझ से परे रहा ।

मेरा बेटा पुकारती, बिलखती थाने के अंदर सहज प्रवेश कर गई, किसने रोका, किसने टोका कुछ भी पता नहीं। बेटे पर नजरें पड़ीं तो लगा मानो जीवन का मूलभूत आधार छीन लिया गया हो, नजारा देख केश्वर के जीने की अभिलाशा शांत सी होने लगी। आँखों के आँसू ठहरते तो कुछ बात करती, उसी क्षण पीछे से धीमी सी आवाज सुनाई देती है

”खूब बचाने की कोशिश करी बुढ़िया, अब नहीं बचेगा, फांसी होगी, अब जा कल सबेरे खाना लेती आना,“…

उसने आवाज की तरफ पलट कर नहीं देखा और अपने बेटे को एकटक निहारती रही।

रतन क्रोधित आँखों से केश्वर को तरेर रहा है। केश्वर थकी हारी सी बोझिल आँसू बहाती रही, बहुत देर तक बैठी रही, शाम ढलने को आई, एक भरपूर नज़र रतन पर ड़ालती, आँसू पोंछती उठी और बस अड्डे की तरफ चल दी ।

उसकी सारी रात आँसूओं के साथ, निराशा और सुबह के इंतजार में गुजर गई। रतन से मिलने की ललक में अपने आप घर के हर काम को तेजी से करने की उमंग सी आ गई है। पुराने पड़े काम भी लगता है कि लगे हाथ निपटा ले, जाने यह काम का उत्साह अब कब बने।

जल्दी-जल्दी काम निबटाकर मनोयोग से खाना बनाने की तैयारी करती रही केश्वर। रतन को क्या पसंद है, क्या नहीं पसंद, इस बात को ध्यान में रखकर ताजा मसाला सिलबट्टे पर पीसती रही। आज उसके जोड़ों का दर्द काफूर हो गया है। उसे अपने आप का होश ही कहाँ रहा है, बस रतन के पसंद का खाना बनाकर जल्दी सुबह की आठ वाली बस पकड़ लेगीं, सोचते हुए आसमान की तरफ देखती है, भोर की
हल्की लाली पूरे आसमान पर छिटक आई है सूर्य धरती पर अपने कदम रखने ही वाला है, लो आठ बजे ही जाते हैं और वह है कि अभी रसोई में ही लगी है, देर हो जाएगी तो बस तो छूटेगी ही, रतन भी राह देखता होगा। केश्वर हाथों को तेज गति से चलाने लगी।

गली में डोरा सर पर सब्जी का टोकना रखे आ रही है, केश्वर उसे देखते ही कदमों को तेज कर देती है, नाहक ही यह टोक कर रतन से मिलने जाने में अड़चन डाल देगी। बचपन में माँ कहा करती थी कि घर से निकलते वक्त पीछे से नहीं टोका जाता वरना जिस काम के लिये जा रहे हैं, वह होता नहीं है। वही बात केश्वर को आज याद आ गई, इसीलिये तेज-तेज कदम बढ़ाती है कि उसे आवाज सुनाई देती है,

“अरे ओ काकी, कहाँ जा रही है, इतने भुनसारे,”…

“यह कभी नहीं सुधरेगी, टोक दिया ना करमजली, अपना भाग्य तो चाट गई क्यों मेरे बेटे को खाने पर तूली है?”..केश्वर ऊँची आवाज में बोली ।

“मैंने क्या किया काकी, मैं तो हमेशा शांत रहने का ही कहती रही रतन को, वही तो अपने पर काबू न रख सका, इतने अच्छे संस्कार दिये थे तो क्यों खून कर आया वह?”… हाथ नचाते हुए डोरा बोली।

.“तू चुप कर, मेरा भेजा गरम न कर। मैं लौटकर तुझ से बात करूँगी, चली आती है सामने मुँह उठाए,”…तिरस्कार के भाव उभर आये केश्वर के चेहरे पर।

उधर डोरा अपने से ही बातें कर रही है,… लो कर लो बात, मिलने तो ऐसे जा रही है, जैसे सपूत ने देश की रक्षा के लिये कत्ल किया हो, नासमिटा प्यार करता था तो बोला क्यों नही, हरिया को मार डाला,
मेरी किस्मत भी तो देखो कितनी फूटी निकली, जिसको देख लेने का सुख लिए इस गाँव में पड़ी थी, वही दुनियाँ को छोड़ गया।”… आँखें झलक आईं, वह पलटकर दूसरी दिशा में चल दी, जिंदगी कब तक इन गलियों में रूठी रहेगी, उसे तो घूम-फिर कर इन्हीं गलियों से गुजरना है।

बस स्टैण्ड पर कोई गाड़ी नहीं थी, केश्वर बस की राह देखते आम के पेड़ के तने से सट कर बैठ गई, सुबह से जाने की जो उत्सुकता थी अब वह धीरे-धीरे फिसलने लगी, कल की मुलाकात का दृश्य उभरने लगा, पता नहीं रतन इस बार भी मुझे देखकर गुस्से से न भर जाए, अगर नाराज होगा तो मैं दूर से ही उसे देख लूँगी, पास नहीं जाऊँगी, पुलिस वाले भैया से खाने का डिब्बा भिजवा दूँगी। कम से कम खाना तो वह सुकून से खा सकेगा। केश्वर का चेहरा बुझने लगा।

कल पड़ोस वाले राम भरोसे घर आ गया था, बहुत देर तक रतन को कैसे बाहर निकाले पर विचार-विमर्श करता रहा, जब कोई रास्ता न सुझा तो निराश हो सर खुजाने लगा।

क्रमश:……..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *