रानी गिडयालू “नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई”

विरांगनाओं की कहानियाँ अदभूत है, जितना हम जानते हैं उतनी ही और जानने की अभिलाषा जागती है, मणिपुर की इस कम उम्र की विरांगना की कहानी इंसानी दिमाग की गहराई को नापने के लिए मजबूर करती है , विस्तार से इनके जज्बे को पढ़ते हैं।

रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी 1915 को मणिपुर के तमेंगलोंग जिले के तौसेम उप-खंड के नुन्ग्काओ (लोंग्काओ) नामक गाँव में हुआ था। अपने माता-पिता की आठ संतानों में वे पाँचवे नंबर की थीं। उनके परिवार का सम्बन्ध गाँव के शाषक वर्ग से था। आस-पास कोई स्कूल न होने के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा नहीं हो पायी।

नागालैंड के उत्तरी कछार में रहने वाली रानी गिडयालू मात्र 13 साल की उम्र में वे अपने चचेरे भाई जादोनाग के ‘हेराका’ आन्दोलन में शामिल हो गयीं।  प्रारंभ में इस आन्दोलन का स्वरुप धार्मिक था पर धीरे-धीरे इसने राजनैतिक रूप धारण कर लिया जब आन्दोलनकारियों ने मणिपुर और नागा क्षेत्रों से अंग्रेजों को खदेड़ना शुरू किया। मणिपुर के ग्रामीणों को सत्याग्रह में शामिल करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। सन् 1931 में जब अंग्रेजों ने जादोनाग को गिरफ्तार कर फांसी पर चढ़ा दिया तब रानी गाइदिनल्यू उसकी आध्यात्मिक और राजनीतिक उत्तराधिकारी बनी।

जोडयांग की मौत के बाद गिडयालू ने आंदोलन अपने हाथ में ले लिया और “नो टैक्स” अभियान छेड़ा। इस पर अंग्रेजों ने उनके गाँव के सारे हथियार जब्त कर सामूहिक जुर्माना लगा दिया। जिससे आंदोलन तेज हो गया। उन्होंने अपने लोगों को कर नहीं चुकाने के लिए भी प्रोत्साहित किया। कुछ स्थानीय नागा लोगों ने खुलकर उनके कार्यों के लिए चंदा दिया।

ब्रिटिश प्रशासन उनकी गतिविधियों से पहले ही बहुत परेशां था पर अब और सतर्क हो गया। अब वे उनके पीछे लग गए। रानी बड़ी चतुराई से असम, नागालैंड और मणिपुर के एक-गाँव से दूसरे गाँव घूम-घूम कर प्रशासन को चकमा दे रही थीं। असम के गवर्नर ने ‘असम राइफल्स’ की दो टुकड़ियाँ उनको और उनकी सेना को पकड़ने के लिए भेजा। इसके साथ-साथ प्रशासन ने रानी गाइदिनल्यू को पकड़ने में मदद करने के लिए इनाम भी घोषित कर दिया और अंततः 17 अक्टूबर 1932 को रानी और उनके कई समर्थकों को बहुत श्रम के बाद गिरफ्तार कर  जेल भेज दिया। उस समय उनकी उम्र मात्र 16 साल थी।  

रानी गाइदिनल्यू को इम्फाल ले जाया गया जहाँ उनपर 10 महीने तक मुकदमा चला और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। प्रशासन ने उनके ज्यादातर सहयोगियों को या तो मौत की सजा दी या जेल में डाल दिया।

सन 1933 से लेकर सन 1947 तक रानी गाइदिनल्यू गौहाटी, शिल्लोंग, आइजोल और तुरा जेल में कैद रहीं।

सन् 1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू उनसे शिंलाग जेल में मिले और उनकी रिहाई के प्रयास किए,  किन्तु अंग्रेज़ों ने उनको रिहा नहीं किया। भारत की आजादी के बाद सन् 1947 में उनकी रिहाई हुई। आजादी के बाद उन्होंने अपने लोगों के विकास के लिए कार्य किया।
रानी एक प्रसिद्ध भारतीय महिला क्रांतिकारी थीं। उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान नागालैण्ड में अंग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया। इस वीरांगना को आजादी की लड़ाई में तमाम वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए ‘नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई’ भी कहा जाता है। रानी गिडयालू आजादी की जंग में उत्तर-पूर्व की महिलाओं के सक्रिय सहभागिता की प्रतीक हैं।

©A

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *