ग़ज़ल
2122 12 12 22 / 112
बात बिगड़ी हुई बने तो कभी,
राहे-मंज़िल यहाँ मिले तो कभी।
ग़मजदा हूँ मुझे सुकूँ दे दो,
यार दिल की कली खिले तो कभी।
इन अंधेरों में खो गया हूँ मैं,
सुबह की रोशनी दिखे तो कभी।
प्यार ऐसा हो रूह खिल जाए,
दीप दिल का यहाँ जले तो कभी।
ढूंढ़ने से ख़ुदा भी मिल जाए
जुस्तजू यार दिल करे तो कभी।
नफरतें रोपते रहे हैं वो,
प्यार का फूल भी खिले तो कभी।
हर कदम पर जहाँ में कांटे हैं,
प्यार की राह पर चले तो कभी।
©A