ग़ज़ल

यूँ भी होता है कुछ भला करना,
कुछ नहीं है तो बस दुआ करना।

चाहतों का न दौर हो ना सही,
पर अदावत की मत खता करना।

खुद पे विश्वास बस रखो जग में,
कुछ न औरों से आसरा करना।

आजकल जैसे साथ हो मेरे ,
उस तरह ग़म में भी रहा करना

मानते हैं कि हमसे रूठे हो,
अब न सपनों में ही रहा करना।

©A

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