Efficiency दक्षता

पता मिलते ही आफिस खुलने का समय देखा और झटपट तैयार होने लगी इला। दिल-दिमाग में तरह-तरह के तर्क-कुतर्क चल रहे हैं। इसी उत्तेजना में दूसरी मंजिल चढ़ती वह हाँफने लगी, जब थकान ने जोर मारा तो थोड़ा दम लेकर धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। मन ही मन बार-बार दुहरा रही है कि अपने ही पति की जासूसी करने जा रही है। फिर झुंझला उठती।

“क्या समझता है मनजीत, मैं भी उसे देख लूँगी, मुझे क्या समझ रखा है, और भी न जाने क्या-क्या,”… चेहरा उत्तेजना व साँस के तेज-तेज चलने से लाल हो गया है।

तीसरी मंजिल पर पहुँचकर वह दाँयी ओर को बढ़ी। एक, दो, तीसरे चेम्बर के सामने परफेक्ट एजेन्सी का बोर्ड लटक रहा है। इला दीवार थामकर थोड़ा सामान्य होने की कोशिश करने लगी। दिल कह रहा है क्या यह ठीक है, कि मनजीत की जासूसी करवाऊँ, दिमाग जोर मार रहा है कि उससे झूठ बोलकर, धोखा करना सरासर बेइमानी है। वह वफ़ा कर रही है और मनजीत बेवफाई।

यही सब सोचते फटक से दरवाजा खोला दिया। सामने ही रिसेप्शनिस्ट बैठी है।

“सूरज नाइक से मिलना है,”…इला ने पूछा ।

“वहाँ अन्दर,”…कहकर वह फाईलें देखने लगी।

इला उसी तरफ बढ़ गई, अन्दर सुदर्शन-सा युवक फोन पर किसी से बात कर रहा है, इशारे से बैठने का कहकर वह पुनः बात करने लगा।

‘‘कहिये! मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?’’…कुछ देर बाद वह इला की ओर मुखातिब होकर बोला।

इला ने उसे पूरा विवरण बताकर मनजीत का फोटो दिया तथा शीघ्र जानकारी देने की बात की। इला सब कुछ जल्दी-जल्दी कहना चाहती है, क्योंकि उसे अपना ही मन बदल जाने का डर है।

सूरज नाइक माना हुआ जासूस है ओर ऐसे केस निपटाना उसके बांये हाथ का काम है। फिर भी इला की मासूम सूरत देखकर बीस दिन का समय लिया है।

इला लौटी तो बहुत अच्छा महसूस कर रही है, उसे लग रहा है कि बहुत बड़ा बोझ वह सूरज पर उतार आई है। घर आकर वह अपने दो साल के वैवाहिक जीवन पर नज़र दौड़ा आई, पुरे परिवार की सहमति मनजीत और इला का छ: माह तक एक दुसरे को समझ बूझ कर लिया गया निर्णय है। बेइंतहा मोहब्बत की पींगे भरता यह रिश्ता, परवान चढ़ा फिर शादी की वेदी तक पहुँचा था।

इला आपने सपने के गांव बसाने में ही मगन रही, स्वाभाविक भी है इतना अच्छा परिवार, प्यार की बारिश करता मनजीत, इला को ओर क्या चाहिए, वह तो प्यार के हिंडोले में झुलती अपनी गृहस्थी को व्यवस्थित कर जीवन के सुखद पलों को संवारने में जुटी रही।

मनजीत यथा समय उस दिन सुबह घर पहुँच गया। उसका व्यवहार पूर्ववत ही है। इला को जरूर अपने पर संयम रखने में बड़ी मेहनत करनी पड़ी, मनजीत को देखकर गुस्सा उबलने लगती है। मनजीत की हर गतिविधि उसे सन्दिध लगती, उसे लगा, मनजीत हमेशा से छलावा कर रहा है। दुनिया में इससे बड़ा धोखेबाज और कोई नहीं हो सकता।

इला को बेवफाई का सोचकर ही इतनी खतरनाक बैचैनी हो रही है कि अपने को सम्हालना मुश्किल हो रहा है। पूर्ण समर्पण के बाद ऐसा कैसे कर सकता है मनजीत। जहां इला को बेज्जती महसूस हो रही है वही घोर अपमान हुआ है उसका, इतना बड़ा तिरस्कार वह बहन करने की स्थिति में नहीं है।

अब तो एक ही धुन सवार है जितना जल्दी हो सके इस का निपटारा हो। दिल डर भी रहा है तर्क कुतर्क करने में लगा है, ऐसा नहीं हो सकता मनजीत, यह सब उसका सोचा झूठ निकले। वहीं सच हुआ तो सोचकर बैचैन चरम पर पहुंच रही है।

सूरज के दिए यह बीस दिन उसकी मानसिक यातना के कठिन दिन है जिसे झेलना इला की मजबूरी हो गई है, फिर भी इला ने इतना प्रयास तो किया ही था कि मनजीत को यह आभास न हो कि वह उस पर शक करने लगी है, इस प्रयास में वह कई बार कमजोर पड़ी किन्तु मजबूती से दिल को संभाले हुए हैं।

आज जब सूरज ने बुलाया तो वह पुनः परिणाम जानने की
उत्तेजना से भर गई। वह यह तो जान ही गई थी कि परिणाम कोई अच्छा नहीं आयेगा, क्योंकि उसने उस दिन होटल में मनजीत के साथ प्रत्यूषा को देखने के बाद किसी अच्छे परिणाम की उम्मीद करना नाहक मरुस्थल में पानी तलाशने जैसा होगा, फिर भी वह यह जानने के लिए उत्सुक है कि इन दोनों का क्या सम्बंध है ? वह उस दिन मनजीत के साथ कैसे थी ? क्योंकि वह प्रत्यूषा को कॉलेज के दिनों से ही जानती थी। पूरे कॉलेज में वह दिलफेंक नाम से जानी जाती थी।

यह तो वह उस दिन ही जान गई थी कि वह दोनों उस समय वहाँ ताश खेल रहे थे। फिर भी इनकी जान-पहचान का सिलसिला कब से शुरू हुआ और कहाँ तक पहुँचा, यह जानना आवयक था।

निर्णय लेने की बात तो बाद में आयेगी।। परिणाम जानने की अधीरता में आज वह बिना कुछ खाये-पिये ही घर से निकल पड़ी है। सूरज के सामने बैठ कर वह आज महसूस कर रही है कि जैसे भरी सभा में उसे रुसवा किया जाएगा।

सूरज ने अपने स्टफ से पानी, चाय मगवाया।

“यह सब रहने दो मुझे तो क्या पता चला, सब बताओ,” इंतजार नहीं कर पा रही है इला।

सूरज जानता है कि ऐसे केस में पूरी बात जानने के बाद कई अपना आपा खो देते हैं। वह भी तो अपने को तैयार कर लें कि सुनने के बाद किस तरह सांत्वना देना होगा।

“बताईए,”…इला अधीर हो रही है।

‘‘मनजीत एक दिल फेंक इंसान है, इसके पहले भी इसके चाल-चलन ठीक नहीं रहे हैं। अक्सर वह होटलों में अनेक लड़कियों के साथ देखा गया है। चूंकि इनका जॉब टूरिंग है, अतः यह विभिन्न शहरों में भी यही हरकत करता है,”…सूरज थोड़ी देर को रुका।

इला हतप्रभ हो गई, इस बात से उसकी आंखें स्थिर हो गई। सूरज ने पानी का ग्लास आगे कर दिया।

“कृपया, अपने को सम्हाले आप,”…सूरज ने सहज होने के लिए कहा।

“प्रत्यूषा, की बात क्या,”….बात बिच में ही छूट गई, इला को अन्दर से दर्द के हिलौरें थपेड़े से चोट कर रहे हैं, आपने वजूद पर इतना तीखा प्रहार वह झेलने में अपने को असक्षम पा रही है।

“प्रत्यूषा, का साथ होना संयोग ही है, शायद उस रात ताश खेलना समय काटने का साधन रहा हो, क्योंकि प्रत्यूषा यह नहीं जानती कि मनजीत आपके पति हैं, मैडम हमारी आज तक की छानबीन का यही नतीजा निकला है।’’…ठहरे हुए लहजे में सूरज ने कहा।

इला भावशून्य-सी बैठी रही, सुझ ही नहीं रहा जो सामने आया है वह कैसे न विश्वास करें। इन बीस दिनों में मनजीत कई बार झूठ बोल चुका है, वह तो सतर्क थी इसलिए पकड़ रही थी हर बात को। थोड़ी देर तक इला यूं ही विचारों के झंझावात में उलझी रही। सूरज ने भी उसे डिस्टर्ब नहीं किया।

‘‘क्या आप मुझे एक अच्छे वकील का पता बता सकते है जो मुझे मनजीत से निजात दिला सके।’’…थोड़ी देर बाद बेहद ठंडे लहजे में इला ने पूछा।

सूरज हैरत में है कि तुरंत यह निर्णय कोई नहीं लेता, एक-दूसरे पर दोषारोपण, फिर कुछ समय एक-दूसरे से दूर रहने के बाद नौबत तलाक तक पहुँचती है, किंतु इला तो जैसे दृढ़ संकल्प लेकर आयी है।

“मैडम, थोड़े वक्त बाद आप इस विषय पर सोचें, तुरंत निर्णय लेना ठीक नहीं है,”…सूरज ने समझाने की गरज से बोला।

“क्यों,”…सीधे सूरज की आँखों में देखते हुए पूछा इला ने।

“यह बड़ा निर्णय है, परिवार वालों से चर्चा कर लें,”…सूरज भी सकपका गया है, फिर भी बात सम्हालने के लिए बोला।

“मेरे माता-पिता ने मुझे यह सीख लेकर विदा किया था कि जब कभी भी जीवन में मनजीत के साथ रहना असहनीय हो जाये,और उस घर में रहना दूभर हो जाये, तो तुम्हारे जन्मदाता का घर सदा तुम्हारा है, जब चाहो चली आना, मनजीत ने तो धोखा तो दिया ही है उसपर विश्वास की धज्जियां उड़ाई है, ऐसे व्यक्तित्व से क्या उम्मीद की जा सकती है, आप बतायें,”…इला ने बड़े इत्मीनान से यह बात कही।

सूरज सकते में है, क्या जबाव दे, महिलाओं का तो हाल यह होता है कि रोन धोना, चीखना चील्लाना करती है, कई बार तो गलियाँ तक देती है,काफी हंगामा होता है।

सूरज के जीवन का यह पहला मौका है जहाँ इला उसके सामने ही निर्णय लेने पर आमादा है । आज पहली बार सूरज को लगा कि महिलाओं में निर्णय लेने की दक्षता आई है, अब होगा समाज में बदलाव का पदार्पण।

©A

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