Gajal ग़ज़ल
ग़ज़ल
ये सारा ज़माना हमारा हुआ
तुम्हें रूठना बस गवारा हुआ ।
हमी ख़्वाब में बात करते रहे
न ही तेरी तरफ से ही इशारा हुआ
सहर-शाम चौखट तेरी थाम कर
कि रोया मेरा दिल ये हारा हुआ ।
समाधि पे जिसकी जलाया दिया
सिपाही वतन का वो प्यारा हुआ ।
उसी रात दुश्मन दगा कर गया
उसी दिन तो था भाईचारा हुआ ।
मेरा वक्त मुश्किल से गुजरा मगर
नहीं था वो सरहद पे हारा हुआ ।
ज़रा देख कितने मिले हैं सलाम
तिरंगा वतन का सहारा हुआ ।
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