Gajal ग़ज़ल
बेवजह जब भी यूँ मुस्कुराना पड़ा,
धैर्य को तब मेरे लड़खड़ाना पड़ा ।
दिल है नादान कमबख़्त माने नहीं,
कितने जतनों से इसको मनाना पड़ा।
मिल सका कोई सागर नहीं प्यार का,
गहरी नदियों में गोता लगाना पड़ा।
मिलके चलते तो फिर भी कोई बात थी,
बोझ समझे तो फिर यह निभाना पड़ा ।
किस्मतों की बुलंदी तो आई समझ,
है गधा भी सिकंदर बताना पड़ा ।
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