Gajal ग़ज़ल
पास आओं कभी ख़ुशी बनकर,
मेरे सपनो की ज़िन्दगी बनकर।
क्या करूँगी मैं फूल बन आख़िर,
मुझको रहने दो इक कली बनकर।
मेरे ज़ज़्बात को ज़रा समझो,
मुझको समझो मेरे कभी बनकर ।
कितनी बातें है तुमसे कहने को,
गर सुनो रात चाँदनी बनकर।
कब तलक हम हवा से बात करें,
थाम ले हाथ हथकड़ी बनकर ।
आज़माने को है बहुत कुछ पर,
यह जूनूं रह गया सख़ी बनकर।
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