Humraj हमराज

हमराज

साहित्य के प्रोग्राम अक्सर हुआ करते हैं और हम लोग इन्हीं साहित्यिक सम्मेलनों में मिलते भी हैं। हमारे विश्वविद्यालय का साहित्यिक सम्मेलन ओरछा में रखा गया। पूरा उत्साह और जोश था कि इस सम्मेलन में तो जाना ही है। जहाँ पुराने साथियों से मुलाकात होगी, वहीं कहीं कुछ नये लोगों से भी मिलेंगे और दिन दुनिया से दूर दोस्तों की टोली मैं तीन-चार दिन मस्ती ही मस्ती, सोचकर ही प्रसन्नता छा रही है। निश्चित दिन कुछ लोग ट्रेन से तो कुछ लोग बस से और कुछ लोग टैक्सी और अपने व्यक्तिगत वाहन से पहुँच गए। मेल मुलाकात का सिलसिला शुरू हुआ और वह शाम एक दूसरों से परिचय और हालचाल पूछने में निकल गई।

पहला दिन थोड़ी शर्म और झिझक में रहे नये पुराने साथी, लेकिन रात होते-होते सब अपने-अपने खोल में वापस आ गये और यह भूल गये कि वह आपस में एक दूसरे से अभी-अभी मिले हैं अपने पूरे जोश में और मस्ती के माहौल में आ गये।

नई ऊर्जा के साथ सुबह, बेतवा के घाट पर उतरी, निराली और मनमोहक, पक्षियों की चहचहाहट के साथ, सर-सर बहती तेज-तेज हवाओं का सीटी बजाना बहुत ही रोमांचित कर रहा है, उबड़ खाबड़ रास्ते और उस पर धूल उड़ाती गाड़ियों का आना जाना, मानों पीछे कहीं पुराने युग में ले गया है, बेतवा तक जाने का रास्ता भी ऊँचा नीचा है पत्थरों से पटी हुई बेतवा ऐसी लग रही है जैसे यह पत्थर नहीं है हीरे मोती है जिनका बेतवा ने अपने गले में हार डाल रखा है और अपने बिल्कुल बीच में जल धारा बहाती हुई आराम से लेटी हुई है और बड़ी मगन होकर बही जा रही है। नये साथियों के साथ नया जोश और यह मनमोहक, मनोरम दृश्य, फिर क्या कहना कोई कसर नहीं छोड़ी बेतवा में उतर कर जल से अठखेलियाँ करने में।

दूसरे दिन नौ बजते-बजते एक और सदस्य का पदार्पण हुआ उन्हें देखते ही आह निकल गई, वह गौर वर्ण ऐसे जैसे दूध से निकल कर आ रही हैं, आँखों में काजल, होंठ सुर्ख गुलाबी, सलवार सूट में मुझे फोम की गुड़िया सी लगी, उस सेमिनार में जिया के पीछे भवरे बने पुरुषों ने जब अनामिका जी को देखा तो आह भर कर रह गये, जिया को भी उनके व्यक्तित्व ने प्रभावित किया, उनकी चाल सदी हुई व सुनहरे बालों में सफेद फूल स्वर्णकार द्वारा बनाईं कलाकृति में सफेद मोती टका सा लगा, खिलखिला कर हंसती तो उनके दांत सफेद मोती से चमकते, मस्त मौला इतनी, की छोटी बच्चियों सी जिद करती और अपनत्व के ऐसे हिलोरे देती कि मन भर-भर आता, निश्चित समय पर शिविर में रहते व पास बहती बेतवा नदी के तट पर जा बैठते, जल की शीतलता जहाँ तन मन को आराम देती, वही वहाँ का प्राकृतिक दृश्य मन को मोह लेता।

हम लोगों की टोली मैं घूमते-घूमते ओर साथी भी आ जाते फिर क्या था नदी में पत्थर उछालने से लेकर एक दूसरे को भिगोने का खेल खेलते, एक दूसरे के पीछे भागते हुए हम मौज मस्ती में लगे रहते, जिया जब भी अनामिका जी के करीब जाती उनके गालों को, हाथों को सहला देती, उसकी शरारत पर वह मुस्कुरा देती।

“जिया तू बड़ी शैतान है,”….भीगे गालों से, कपड़ों से पानी झाड़ती वह कहती जाती।

जिया भाग जाती, मनोरमा, मालती, शीला भी उनकी मुस्कान की कायल हैं।

तीसरे दिन जब ग्रुप फोटो खिंचवाने खड़े हुए तो फिर वही छेड़छाड़ कोई किसी के साथ खड़ा होना चाहता है, तो कोई किसी के साथ, जिया के साथ फोटो खिंचवाना सभी चाहते हैं और जिया देख रही है कि अनामिका जी उसी से चिपकी खड़ी है, सभी शरारत के मूड में हैं मना करने की हिम्मत किसी में नहीं है, सभी उन पलों को जी लेना चाह रहे हैं, उस पर जिया को उनका संरक्षण देना अच्छा लगा है।

“अनामिका जी, यूं तो आप बेहद हसीन हैं और हंसमुख भी, किंतु क्या आप अपना दर्द मुझसे नहीं बांट सकती, कहीं कोई एक ऐसी फांस है जो आपको टीस रही है यदि आप ठीक समझे तो मुझे प्लीज बताये,”… दोपहर में उन्हें जिया ने कहीं गुम पाया तो पकड़ लिया ।

“अरे नहीं जिया, तुझे कोई गलतफहमी हुई है ऐसी कोई बात नहीं,”.. अपने मनोभावों दुरुस्त करते हुए बोली।

“नहीं अनामिका जी, मैं छोटी हूँ किंतु कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें मेरा दिल पकड़ लेता है बताओ न, क्या बात है ?”… जीया ने छोटी बच्ची की तरह ज़िद की ।

“जिया, तू बहुत ही शैतान है मुझे पकड़ लिया, जिस बात को मैं समझती थी कि मैं आसानी से छुपा जाती हूँ उसी पर तूने हाथ रख दिया,”.. वह मुस्कुरा दी।

“अजी, हममें कुछ खास बात है,”… जिया ने शरारत से अपनी साड़ी का आंचल लहराया।

“ठीक है चलो नदी पर चलते हैं, वहीं बैठकर वह सब बताऊँगी,”… कहती हुई वह उठ खड़ी हुई।

नदी पर एक खास समतल पत्थर पर दोनों बैठ गई।

“सालों से उन्हीं सड़कों-गलियों पर गाड़ी लेकर निकलते हैं लेकिन उस दिन मेरे पति की गाड़ी खाई हैं उतर गई और उनका कुछ पता न चला,”..उन्होंने कहना शुरू किया।

“हाय कैसे…., मुझे अफसोस है कि मेने आपको यह सब बताने के लिए उकसाया और आप अपने दुख भरे दिनों में वापस चले गये मैं माफी चाहती हूँ,”… जिया अफसोस भरे शब्दों में बोली।

“अब जब तुम्हें मेरे दुख की जानकारी हो ही गई है तो मेरी व्यथा भी सुनो, हो सकता है मैं तुम्हें बता कर कुछ हल्का महसूस करूँ,”… उन्होंने बात स्पष्ट की।

जिया में जहाँ उत्सुकता है आगे सुनने की वही थोड़ी झिझक भी हो रही है। पहला झटका तो यही लग गया की उनकेे पति नहीं है।

” मेरे पति सेव से भरा ट्रक ले जाते मंड़ी, बेचकर लौटते वक्त पति सहित खाई में समा गया ट्रक, जहाँ से कुछ भी नहीं मिला, मुझे आशा थी कि कभी न कभी वह वापस जरूर आएँगे किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ,”… कुछ देर को वह सांस लेने को रुकी, जैसे वह घटना याद आते ही उनका रोम-रोम चितकार कर उठा हो।

जिया मौन ही बनी रही, उनके चेहरे पर उठते गिरते मनोभावों को देख रही है और पहले दिन की छवि उस समय कहीं गुम हो गई थी।

“बहुत वक्त लगा खुद को संभालने में और फिर बच्चों को संभालने में, अपने आप को संभाल तो मैं आज भी नहीं पाई हूँ, मुझमें कहीं न कहीं छटपटाहट होती रहती है कि यह इतने अच्छे चालक होने के बाद भी कैसे उस मोड़ पर कुछ दिखाई नहीं दिया और मेरा दिल इस बात को मानने को भी तैयार नहीं है कि इनसे कोई गलती हुई है पता नहीं दिल इस बात को स्वीकार ही नहीं करता है,”… उन्होंने अपने अंदर की बेचैनी जिया के सामने उड़ेल दी।

“फिर आपने क्या किया, किस तरह अपने दुख को बर्दाश्त करती रही, कैसे अपनी जिंदगी को फिर यहाँ तक लेकर आई,”… जिया ने एक साथ ढेर सारे सवाल पूछ लिए।

“बहुत मुश्किल होता है यह सब कुछ कर पाना, भगवान भरोसे ही में चलती रही और यहाँ तक आ गई लेकिन मेरी एक खोज जारी रही, मैं ऐसे इंसान को तलाशने लगी जो मुझे यह बता सके कि यह घटना क्यों घटी,,”.. वह सांस लेने को रूकी।

“फिर आपने क्या किया,”… जिया की उत्सुकता बढ़ती जा रही है।

” मैं खुद इन बातों में विश्वास नहीं करती लेकिन पहाड़ों में इस तरह के साधु संत बहुत आते हैं जिन्हें सिद्धि प्राप्त होती है और वह आपका भूत भविष्य सब देख कर बता देते हैं,”… अनामिका ने कहा।

“आपको कोई ऐसा सिद्ध पुरुष मिला,”… जिया की जिज्ञासा बढ़ने लगी।

” हां, एक बार ऐसे तांत्रिक का पता चला जो कि आत्मा जगा कर बताता है कि कौन कहाँ है, जैसे तैसे पहुँच गई, पता नहीं उस गुफा का असर था या वहाँ जल रहे धूप दीप का मन हर बार बात पर विश्वास करना चाहता है, मेरी उत्सुकता तो इस बात की थी कि मैं जल्दी से जल्दी अपने पति से बात करूं,”… मैं थोड़ा रुक गई।

जिया बहुत ध्यान से सब बातें सुन रही है कहीं उत्सुकता है तो कहीं न कहीं दबे पांव एक सिहरन और डर भी साथ-साथ आ गया है।

“कुछ देर पूजा पाठ करने के बाद उस तांत्रिक ने सब कुछ अनामिका को समझाया और बताया कि डरना नहीं, जो भी तुम्हें बात करनी हो तुम पूछ सकती हो। थोड़ी ही देर में तांत्रिक की आवाज बदल गई और वह आवाज मुझे हूबहू अपने पति की लगने लगी।”…

“कैसी हो अनामिका, यहाँ क्यों आई हो,”… जब उस तांत्रिक के मुँह से पति की आवाज में यह शब्द सुने तो अनामिका जार-जार रो दी, उससे कुछ कहा ही नहीं गया, इस आवाज को सुनने को तो वह बरसों से तरस रही थी वह अपने अंदर का गुबार सब बहा देना चाहती है कुछ देर रो लेने के बाद वह शांत हुई।

“घर पर बच्चे सब ठीक हैं, तुम ठीक हो,”… तांत्रिक के मुँह से फिर आवाज आई।

“अब यह सब क्यों पूछ रहे हो, जब छोड़कर गए थे तब याद नहीं था कि हम सब आपके बिना अकेले रह जाएंगे,”… अनामिका अपने पहले वाले रूप में बात करने लगी।

“तो क्या बोले भाई साहब,”…जिया को ठंडी फुरफुरी आ गई।

“उन्होंने बताया कि उनके सामने धुंध छा गई थी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था,”… साधु बाबा के मुँह से यह शब्द निकले ।

“इतने वर्षों से उसी सड़क से आना जाना होता है फिर यह कैसे हुआ, मैं इस बात को नहीं मानती,”… अनामिका ने अपनी बात कही।

“भाग्य का लिखा था सो हो गया,”… साधु बाबा के रूप में इनकी आवाज सुनाई दी ।

“मैं इस बात को किसी भी हालत में नहीं स्वीकार करती कि आप से गलती हुई है आप मुझे सच-सच बताएं उस दिन क्या हुआ था,”… अनामिका बोली।

“देखो तुम्हें मानना पड़ेगा इसके अलावा कोई चारा नहीं है,”..

“मैं, सच जानने बगैर यहाँ से जाने वाली नहीं हूँ,”… अनामिका भी जिद पर उतर आई।

कुछ देर मौन छाया रहा और फिर सिसक ने की आवाज सुनाई दी, अनामिका भी जार जार रो पड़ी,”… वह साधु बाबा रो रहा था

“बता दीजिए,”… अनामिका ने आग्रह किया।

“मैं भी यहाँ आ कर जान पाया हूँ तब से ही छटपटा रहा हूँ तुम न ही जानो तो अच्छा है,”… यह बोले।

“नहीं… मैं जानना चाहती हूँ, मुझे बताओ,”… रोते हुए ही अनामिका ने जोर दिया।

“सुनों अनामिका, घर जाओ और जैसा जीवन गुजार रहा है गुजारो,”… इन्होंने समझाने की कोशिश करते हुए पुनः कहा।

“मैं, न तो यहाँ से जाऊँगी न आपको जाने दूँगी,”… अनामिका अपनी बात पर अड़ी रही।

“सुनकर तुम जी नहीं पाओगी अनामिका,”…इनका स्वर दर्द में डूबा है।

“अकेले तड़प रही हूँ और तड़प लूँगी पर बताओ, मुझे लगने लगा है कि मुझसे कोई गलती हुई है, इसी वजह से आप नहीं बता रहे हो,”… अनामिका में अब खिज़ भरने लगी है वह कैसे भी कर के सच जानना चाह रही है।

” फिर भाई साहब ने बताया या नहीं,”… जिया ने भी अधीर होकर पूछा.

उन्होंने मुझे बहुत तरह से समझाने की कोशिश की , किंतु अनामिका टस से मस नहीं हुई। हार कर उन्होंने बताया।

“तुम्हारे बड़े बेटे के ससुर ने ही यह सब करवाया है,”… उनका यह कहना ही अनामिका को सन्नाटे में ले गया उसके होश उड़ गए उसे याद आने लगा कि किस तरह उसकी चौखट पर नाक रगड़-रगड़ गये थे समधी, कि मेरी बेटी की इज्जत बचा लो, हम भी बेटी वाले थे उनकी बेटी प्यार के चक्कर में बदनाम हो चुकी थी, यह बात हमें भी पता थी, किंतु एक पिता की व्यथा समझते हुए हमने अपने बेटे को राजी किया था, वही व्यक्ति ऐसा करेगा विश्वास ही नहीं हो रहा है। फिर एक शब्द भी है कि इन्होंने बताया है तो झूठ तो हो नहीं सकता लेकिन मन कहीं न कहीं तर्क-कुतर्क कर ही रहा था वह दुविधा में ही थी ।

‘”ठीक से रहना,”.. कहकर जाने की बात कर दी और वह चले गए मैं जाने कब तक बैठी रही, होश आया तो वह वहाँ से निकल चुकी थी।

“आपने, फिर किस तरह बहू का सामना किया, आपको बहुत बुरा लगा ना,”…जिया ने पूछा।

” हाँ जिया, मन में तरह-तरह के सवाल आते जाते किंतु कोई हल नहीं निकल रहा है
बेटा बहू शहर में रहते हैं, जब भी आते, बहू मुझे कातिल नजर आती है, मैं प्रत्यक्ष में तो कुछ प्रकट नहीं करती किंतु उस समय मेरे दिल पर सांप लौट जाते हैं । यह बात न मैं किसी से कह पाती हूँ और न ही सहन होती है। बस दिल को धीरे-धीरे समझा रही हूँ,”…
उनके आँसू बह निकले।

गले से लगाकर जिया ने सांत्वना दी, उसके पास भी शब्द नहीं है क्या कहे, फिर भी उन्हें शांत किया।

“देख जिया, इस घटना से तुझे और मुझे फर्क पड़ा है, लेकिन यह बेतवा नदी को तो देख जैसे पहले बह रही थी वैसे ही बह रही है, जबकि यह तो हमारी कहानी की प्रत्यक्षदर्शी श्रोता है अरे इसमें कोई बदलाव नहीं आया, बेतवा की तरह हम कब बन पाएंगे,”… अनामिका ने अपने दिल को हल्का करने के लिए यह बात कह दी।

जिया हल्का सा मुस्कुरा दी।

सब विदा होने की तैयारी करने लगे, इस शिविर का यह अंतिम दिन है, सभी अपने अपने कमरों में सामान पैक कर के हॉल में इकट्ठे होने वाले हैं और वहीं से सब अपने-अपने गंतव्य को निकल जाएंगे।

जिया को कल से ही अनामिका जी की बातें बहुत परेशान कर रही है, वह सोच-सोच कर परेशान हैं कि यह सब जानकर अनामिका जी अपने बच्चों के साथ कैसे रह पाती हैं, कैसे वह अपने ही घर में उन सब को देख पा रही है, बहुत कष्टप्रद होगा यह सब कुछ सहना। पता नहीं क्यों जिया को इस विषय पर फिर से अनामिका जी से बात करने का मन हुआ, लगा कि उन्हें कुछ ऐसा तो कहूँ कि वह कुछ राहत महसूस करें, कुछ उनके दिल को ठंडक पहुँचे, उनके सोच का रुख बदल दूँ, इसी उधेड़बुन में कल से लगी हुई है, उसने पलट कर देखा अनामिका जी अपना बैग पैक करने में लगी है।

“अनामिका जी, आप अपने दिल से यह बात निकाल दें कि आपके पति के हत्यारे की बेटी है आपकी बहू, बल्कि यदि हो सके तो आप उसमें बेटी को पाने का प्रयास करें पता नहीं उस तांत्रिक की बात में कितना सच है, दूसरी दुनिया में भी कुछ याद है भी या नहीं, हम क्या जाने, क्या ऊपर भाई साहब आपका इंतजार करेंगे, हर बात में अविश्वास नजर आता है, तो फिर बेटे की गृहस्थी को संदेह की दृष्टि से क्यों देखें, बेटा तो पत्नी को चाहता है, आपकी बेटी भी भाभी की प्यारी है, फिर आपको उससे क्या शिकायत, अगर बहू को यह पता चलेगा कि उसके पिता ने ससुर की हत्या करवाई है तो उसके दुख की तो कोई सीमा ही नहीं रहेगी, हो सकता है कि वो खुद अपने को नुक्सान पहुँचाने पर आमादा हो जाए,”… जिया ने एक ही सांस में सब कुछ फटफट कह दिया जैसे वह रुकेगी तो कोई बात छूट न जाए इस डर से वह फटाफट बोलती चली गई।

अनामिका जड़ हो सब सुन रही है।

“कितनी बदनसीब है वह बेटी जिसे इतना धूर्त पिता मिला, जो उसी के घर में आग लगाकर हाथ सेक रहा है, आप तो समझदार हैं, इस दुनिया में जब तक हम हैं क्यों किसी से नफरत करें, जब प्यार दे सकते हैं तो प्यार ही दे, फिर आप जान ही गए हैं कि दुनिया से जाने के बाद हमारी अच्छी बातें ही याद रह जाती हैं, हम अपनों को ही प्यार से महरूम रखेंगे तो क्या हम सुकून पा सकेंगे, हमें जो बात सुकून दे वही करना चाहिए हां यह बात मैं मानती हूँ कि कहने और करने में फर्क है किंतु कोशिश की जा सकती है,”… जिया उनके करीब आकर उनका हाथ सहलाते हुए यह सब कह गई और वह ध्यान से जिया की बातें सुन तो रही है लेकिन उसके चेहरे के भाव भी देख पा रही है।

“जिया, यह बातें मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई, तेरे छोटे से दिमाग में तो इतनी बड़ी-बड़ी बातें भरी है,”… उनकी आँखें भर आई।

“क्योंकि आप एक तरफा सोच रही है, खुले मन से विचार करके देखें, आप भी इससे अच्छा सोच पाएंगी,”…जिया ने उनके गाल सहलाते हुए शरारत से कहा।

अपने-अपने बैग पैक कर कर हम लोग हाल में एकत्रित हो गए और सब से गले मिल एक दूसरे से विदाई ली, सब एक दूसरों को हमेशा याद रखेंगे का वादा लेकर और फिर किसी इसी तरह के शिविर में मुलाकात होगी का आश्वासन देते, लेते अपने-अपने गंतव्य की ओर निकल पड़े।

लगभग बीस दिनों बाद अनामिका जी का खात आया, लिखा है…

“जिया,

वहाँ से सीधे बेटे बहू के पास आ गई हूँ,, इस बार बहू को देखकर वह पहले जैसी घृणा और तिरस्कार नहीं है बल्कि उस अबोध बालिका के लिए दया और स्नेह उमड़ आया है, मेरे कुंद पड़े मस्तिष्क और दिल के दरवाजे को तुमने अपनी बेहतरीन सोच के हथौड़े से तोड़ कर खोल दिया है, यह तुम्हारी सोच का ही परिणाम है जिया कि मैं इतना अच्छा सोच पा रही हूँ।

मुझे यथार्थ में लाकर तुमने, जीवन का वह विषय पढ़ाया जो आज तक मुझसे अछूता था सच मैंने जीवन को तुमसे ज्यादा बिता दिया, सोचती भी थी कि पर्याप्त अनुभव इकट्ठा हो गया है, किंतु नहीं, तुमने मुझे अहम और उलझन के चक्रव्यू से निकालकर निश्चल सोचने पर मजबूर किया, तुम लाख कोशिश कर लो, मुझसे बड़ी तो नहीं हो सकती किंतु मेरी हमराज बन गई हो सदा सुखी रहो।”

खत पढ़ते-पढ़ते जिया के आँसू निकल गए उसने एक ठंडी राहत भरी सांस ली और खत को हवा में उछाल दिया। खुशी से भर वह झूलने लगी।

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