ग़ज़ल
इन लबों पे हँसी चाहते हैं ,
चैन की जिंदगी चाहते हैं ।
तीरगी में नहीं अब है जीना
सुब्ह की रोशनी चाहते हैं ।
थक गए ख्वाहिशों के मुसाफिर,
अब सुकूँ दो घड़ी चाहते हैं ।
मत करो बदजुबानी किसी से ,
बात मिसरी घुली चाहते हैं ।
खा चुके अब तो धोखे ही धोखे,
अब शराफ़त सभी चाहते हैं ।
©A
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