Paripakve sochपरिपक्व सोच

परिपक्व सोच

दीपावली के दिन ही मम्मी की जय भाई से अमेरिका बात हुई है, निकी इस समय इसी शहर में है, उसके बाद उन्होंने रात दस बजे निकी से बात की, बधाई का आदान प्रदान हुआ, खुश रहो, सुखी रहो का आशीर्वाद दिया, अपना व पापाजी का ध्यान रखने का कहकर निकी ने फोन रख दिया।

कुछ वर्षों से तो त्योहारों के नाम ही रह गये है, बच्चे विदेशों में है, और मां-बाप यहाँ भारत में, अब दीपावली जैसे पर्व पर भी घर सूना- सूना रहे, बहुत बुरा लगता है,मन चाहे तब बात नहीं हो सकती, समय निश्चित होता है उसी समय बात होगी, वीडियो कॉल करके बच्चों से बात कर लो मन गई दिपावली।

पांच मिनट बाद ही फोन की घंटी बज उठी, निकी रसोई समेट रही है, फोन निरज ने उठाया ।

“निकी, चलो मम्मी से मिलकर आते हैं फटाफट चलो,”…निरज बोला।

“आज दीपावली है, रहने दो, कल चलेंगे, मम्मी पापा क्या सोचेंगे, बात तो हो ही चुकी है,”…निकी ने कहा।

“कुछ नहीं सोचेंगे, तुम चलो,”… कहकर निरज अंदर सासूजी के कमरे में चले गया।

“हो आ निकी, जा मिला आ सभी से,”…निरज के साथ सासुजी कमरे से बाहर आते हुए बोली।

“अभी तो मम्मी से बात हुई है मां जी, कल वल चले जयेंगे,”…निकी को थकान हो रही है।

“हो आ निकी, निरज तू इसको लेकर जा,”… सासु मां ने आदेश दिया।

“चलो,”…कहते हुए नीरज बाहर गाड़ी के पास पहुँच गया।

यूँ आनन-फानन में मुझे क्यों ले जा रहे हैं, पहला विचार तो यही आया, आये दिन देखते सुनते रहते हैं कि किस तरह पत्नी को घर से निकालते हैं, कहीं यह सब इन लोगों का पहले से प्लान तो नहीं, निकी की शादी को भी अभी छ:माह ही हुये है।

दूसरा विचार भी चल रहा है कि कहीं उसके घर वालों को कुछ हुआ तो नहीं, मम्मी से तो अभी बात हुई है, कहीं पापा की तबीयत तो नहीं खराब हो गई, नहीं-नहीं पापा को कुछ नहीं हो सकता, अभी तो सब कुछ ठीक था, उनको कुछ नहीं होगा, बात क्या है इन्हीं विचारों में खोई रही कि नीरज ने गाड़ी रोक दी।

घर नहीं है यह, अस्पताल ले आये, अब तो डर और बेचैनी ने धावा बोल दिया, घबराहट में मुँह से आवाज ही नहीं निकली, नीरज ने हाथ पकड़ा और दौड़ते हुये सिढीयां चढ़ाता ले गया, दूर से ही देखा तो पापा बाहर ही दिख गये।

यहाँ क्यों लाये हैं, किसे क्या हुआ है, सोचती वह जब पापा के पास पहुँची तो पापा निकी का कन्धा सहलाते रहे।

तुम्हारी मम्मी ठीक हो जायेंगी, माइनर अटैक आया है,”… सांत्वना देते हुए पापा बोले।

“मम्मी…, मुझसे तो कुछ देर पहले बात हुई थी,”… निकी को विश्वास नहीं हो रहा।

“तुम से बात करने के बाद ही यह सब हुआ,”…पापा बोले।

“मम्मी कहाँ है, मम्मी…,”निकी चीख कर रोने लगी।

“आईसीयू में है,”…पापा का स्वर बुझा हुआ है।

धीरे-धीरे भीड़ बढ़ी और अफरा-तफरी मचने लगी, सासूजी भी आ गई, कोई निकी को कुछ बता नहीं रहा, बस एक दूसरे को मुँह देख रहे हैं।

जब सुबह चार बजे छोटी बहन डिम्पी भी आ गई, तब निकी को आश्चर्य हुआ, इसे कैसे पता चल गया, यह तो दुसरे शहर में है, वह भी आकर निकी से ही पूछने लगी, निकी क्या जवाब देती, लिपट कर रो दी दोनों बहने, कोई कुछ नहीं बता रहा है।

दोनों बहनों के रुदन का शोर सुनकर कुछ घर के बड़े लोगों ने दोनों को घर भेज दिया, दोनों बहने न चाह कर भी घर पर ही रुके रहना पड़ा।

सुबह मम्मी को लाया गया, फिर क्या कुछ हुआ, कुछ पता नहीं, दोनों बेहोश हो गई, हालात बेहद नाजुक, दो दिन बाद होश आया, तो सब कुछ गम में डूबा हुआ है, कोई भी निकी और छोटी बहन डिम्पी से नजरें मिलाने को तैयार नहीं है।

अमेरिका वाला बड़ा भाई जब दोनों के पास आया तो, लिपटकर फूट पड़े सब। दुसरे नम्बर वाला भाई, मम्मी पापा से झगड़ कर घर के आधे हिस्से में रहने लगा था मम्मी पापा अकेले ही रह रहे हैं, तभी तो कभी-कभी पापा कहते थे मम्मी से…. कि अमेरिका वाले के लिए क्यों रोती है, जो पास में है वह भी कौन सी तेरी कद्र करता है।

यह तेरह दिन मम्मी के बिना, उस घर में परिवार के सदस्यों के बीच की
खाइयों और दरारों की भरपूर जानकारी भाई बहनों को हो गई, निकी तो जिसमें घर की बड़ी लड़की होने की वजह से सभी की चहेती ही रही थी, और न ही मम्मी ने कभी मन में किसी के लिए द्वेश, बैरा आने दिया, हमेशा मृदुल भाषी और सब का आदर सम्मान करने वाली लड़की बनाकर निकी को रखा था।

डिम्पी…. सबसे छोटी है लेकिन दोनों बहनों के ब्याह एक साथ किये थे, क्योंकि भाई अमेरिका में रहता है और बार-बार नहीं आ सकता है।
छोटे भाई ने लव मैरिज एक साल पहले ही कर ली थी। जय भाई शादी के बाद अमेरिका ही चले गये और वहीं बस गये।

ईश्वर के आगे किसकी चली है, जो अब किसी की चलती, जिंदगी यूं ही सरकती चली गई, सभी अपने-अपने घरों को वापस जाने की तैयारी में लग गये, और एक दिन ऐसा आया कि पापा जी दरवाजे पर अकेले खड़े रह गये, छोटा भाई चूंकि बाजू में ही रहता है तो एक आस थी सबको कि वह अब पापा जी की देखभाल करेगा और थोड़ा सब लोगों ने समझाया भी था तो एक आश्वासन, एक भरोसा था कि पापा अकेले नहीं है। अब अकेलेपन में पापा जी को मम्मी जी की कमी का एहसास होगा ही, जिसे कोई नहीं रोक पाएगा।

समय का पहिया घूमता रहा और दिन पर दिन के साथ, महीनों में तब्दील होते चले गये, दोनों बेटियाँ और बेटे फोन से खबर लेते रहे और पापा जी उन्हें आश्वस्त करते रहे कि वह ठीक है।

छोटे भाई को कभी-कभी समझाइश दे दी जाती और उसे पापा का ध्यान रखने को कहा भी जाता लेकिन कोई देख तो नहीं पा रहा था ना, कि पापा जी के साथ क्या किया जा रहा है और क्या हो रहा है, सब कुछ जो छोटा भाई बता दे, या पापा जी बता दें, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

निकी जरूर पापा जी की खैर खबर लेने, हर दो-चार दिन में आ जाती और उनके पास दिन भर रुकी रहती, उनके मन पसंद का खाना बनाती, उनके साथ बैठकर ढेरों मम्मी की बातें करती और पापा जी भी बहुत पुरानी-पुरानी बातें सुनाते रहते।

नीरज की जिस जगह पोस्टिंग हुई थी वहाँ मकान न मिलने की वजह से निकी अभी अपने सास-ससुर के साथ रह रही थी, लेकिन जैसे ही मकान मिल गया, निकी भी अपने नये गंतव्य की ओर चली गई।

स्वभाविक है, छोटी जगह में नीरज के लिए भी मुश्किलें पैदा हो रही थी, निकी को पापा को छोड़कर जाना ही था, सास ससुर भी अकेले ही थे, लेकिन आपस में उन लोगों का एक दूसरे का सहारा था ।

शुरू में निक्की भी हर आठवें दिन पापाजी से मिलने चली आती, यह क्रम चलता रहा, पर धीरे-धीरे इस क्रम में अंतर आने लगा और फिर पन्द्रह दिन में चक्कर लगता, फिर धीरे-धीरे एक महिने में ओर फिर दो या तीन माह भी होने लगे। नीरज के काम की अधिकता की वजह से चाह कर भी निकी पापाजी के पास नहीं पहुँच पाती थी इसी तरह समय बीत गया।

पापा जी के पास कभी-कभी बड़ी मौसी, मौसाजी या कभी छोटी मौसी आ कर दो, चार दिन रुक कर चले जाते, उस पर निकी को थोड़ा संतोष भी होता कि पापा जी के साथ अभी और लोग भी हैं।

छोटा भाई अपने पत्नी,जो बड़े घर की बेटी के साथ उसी मकान के दूसरे हिस्से में रहता है, छोटे भाई, भाभी ने पापा को दुख में सहारा नहीं दिया। निकी का तो मानना यह है कि छोटा भाई तो चाहता है पर शायद जो छोटी भाभी है वह पापा को कभी पसंद नहीं कर सकती क्योंकि पापा ने छोटे भाई की शादी का विरोध किया था।

हमारी विधवा छोटी मौसी को घर के सभी सदस्यों को पहले भी बहुत प्यार था, कोई बच्चा न होने की वजह से भी अक्सर वह मम्मीजी के साथ आ कर रहा करती थी।

मम्मी के जाने के दुख में पापा उनके साथ राहत महसूस करते हैं, यह बात भी छोटे भाई, भाभी को पसंद नहीं आई, तो उन्होंने उनके रिश्ते को बदनाम करना शुरू कर दिया।

जब यह बात पापा को पता लगी तो वह दंग रह गये, शायद उन्होंने तब तक यह कुछ सोचा भी नहीं था और शायद वह मम्मी के दुख से उबर भी नहीं पाए थे कि उन पर इतना बड़ा आरोप लगा दिया गया, छोटी मौसी भी वापस चली गई, फिर कभी न आने का कहकर।

“मैं, तुम्हारे ससुर को दूसरी शादी करने की सलाह दे रहा हूँ, तुम्हें कोई एतराज हो तो बता दो,”…नीरज के पापा ने एक दिन नीरज से कहा।

“पापाजी, यह क्या कह रहे हो,”… घोर आश्चर्य से नीरज ने पूछा।

“मैं, सच कह रहा हूँ बेटा, तुम लोग अपने-अपने काम पर चले जाते हो, उनका छोटा बेटा उन पर ध्यान नहीं देता, वह अपना पूरा समय कहाँ बिताये,”…. नीरज के पापा ने गंभीर होकर कहाँ।

“इस उम्र में शादी अजीब नहीं लगेगा पापाजी, और फिर कौन शादी करेगा,”… नीरज थोड़ा परेशान होकर पूछा।

“निकी, की छोटी मौसी विधवा है, और बहुत अच्छी तरह से घर परिवार को जानती समझती है, क्योंकि वह बहुत समय से आती-जाती रही है, तो क्यों न उन दोनों का विवाह करा दिया जाये,”… बाबुजी ने कहा।

“आप, उनके समधी हो, यह बात करोगे तो अच्छा लगेगा बाबुजी,”… नीरज असमंजस बोला।

“यह सब बातें मैं संभाल लूँगा, तुम तो मुझे इतना बताओ तुम साथ दोगे,”…बाबूजी ने पूछा।

एक बार और सोच ले बाबूजी, उनका छोटा बेटा पता है ना, उल्टे ही दिमाग का है,”… शंकित हो नीरज बोला ।

“उसे भी संभाल लेंगे, बस मुझे तुम्हारा साथ चाहिए और हो सके तो अभी निकी को कुछ मत बताना,”….. बाबूजी बोले।

“ऐसे कैसे बाबूजी, वह निकी के पापा जी हैं,”… परेशान हो उठा नीरज।

“निकी को भी बता देंगे, पर जब हम कार्य को अंजाम दे दे, यह काम ही ऐसा है कि हमें सबसे छुपकर और बहुत तेजी से करना है, क्योंकि समाज और रिश्तेदार इस विवाह के लिए बहुत सारी अड़चनें पैदा कर सकते हैं, इसलिए मैं चाहता हूँ कि यह तुम्हें और तुम्हारे ससुर को पता होना चाहिए बस,”… बाबूजी ने अपनी बातें स्पष्ट की।

“छोटी मौसी राजी होंगी बाबूजी,”… नीरज को फिर शंका हूई।

“कह तो रहा हूँ, यह सब मैं संभाल लूँगा, बस तुम निश्चित दिन आ जाना,”… बाबूजी ने बात खत्म करने की गरज से कहाँ।

कोर्ट मैरिज के दिन निरज साथ ही था, निरज, मैरिज के बाद पापाजी, छोटी मौसी को लेकर अपने घर, निकी के पास ले आया। घर के सामने निरज जब गाड़ी से फूल माला लेकर उतरा तो निकी को आश्चर्य हुआ, कहीं ट्रांसफर तो नहीं हो गया निरज का, साथ विदाई पार्टी भी हो गई क्या? , सोचती निकी आगे बढ़ी, तब तक पापाजी को उतरते देख खिल उठी गई निकी, जैसे ही नजदिक पहुँचने को ही थी कि छोटी मौसी नज़र आ गई, निक्की के पैर वहीं की वहीं रुक गये नीरज ने तो कुछ बताया नहीं अचानक पापा जी और छोटी मौसी कैसे यहाँ, ऐसा क्या हुआ है ? असंख्य सवाल उसके मस्तिष्क में उमड़ने-घुमड़ने लगे, वह वही ठीठक गई।

नीरज निकी का हाथ पकड़ कर अंदर ले आया और पापा को अंदर आने के लिए कहने लगा।

जब बात साफ हुई तो वह जड़ हो गई, निकी को पापाजी से ज्यादा नीरज पर गुस्सा आ रहा है, आश्चर्य हो रहा है कि नीरज ने उससे इतनी बड़ी बात कैसे छुपा ली, उसे यह बात क्यों नहीं पहले बताई, उसके दिमाग की सुई बस यही आकर अटक गई।

पापाजी चुपचाप बैठे हुये हैं, वह शायद आत्मग्लानि से भरे बैठे हैं, परिस्थितियाँ उन्हें यह सब करने के लिए मजबूर कर गई और वह आज अपनी बेटी के सामने शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं।

“मैं, तेरी मां सी नहीं बन सकती निकी, दीदी तो मुझसे कई गुना श्रेष्ठ थी, तुम लोग मेरे विधवा रूप से कितने दुखी होते थे, ऐसी ही स्थिति दीदी के जाने के बाद, तेरे पापा की भी हो गई है, औरत मैं सहन करने की शक्ति अपार होती है, किंतु पुरुष बहुत जल्दी टूट जाता है, तुम लोगों के लिए मैं इन्हें संभाल कर रखना चाहती हूँ निकी,”…छोटी मौसी ने निकी को अंक में भर लिया, बहुत देर तक समझाती रही।

निकी की जुबान तालू में ऐसे चिपकी की बस चिपक कर रह गई, किंतु दिमाग तरह-तरह के तर्क कुतर्क करने में लगा है, मां की जगह कोई और ले, यह मन स्वीकार नहीं कर रहा है।

एक बात बार-बार क्रोध रही है, कि निरज ने इतना बड़ा काम कर दिखाया, यह तो निश्चित था कि छोटे भाई की नजरों में फूटी आँख नहीं भाने वाली निकी।

निरज, सारा इल्जाम अपने सर लेकर पापाजी की मुश्किलें आसान करने में सहायक बने, पापाजी, निरज को शुरू से ही बहुत चाहते हैं, अब तो निरज ने पापाजी के अंतर्मन में जगह बना ली है, जो उनके दोनों बेटे नहीं बना पाए हैं।

©A

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