Result परणिति
अब बात को
छुपी ही रहने दो
जरा अब सोने दो
रच बस गई है
यह कड़वाहट
जीवन में
शकुनी भी दंग है
इतनी घीनौनी चाल से
चालाकी में लोमड़ी भी
शर्मसार है
दिन में उजले धंधे
करने वाले
सूट बूट में
इज्जत का मुखौटा पहने
गहरी काली
रात की बातें
चिखों से भरी बिसाते
लगाती बोली
सौदे होते जाने कितने
यह कैसा प्यार है
जो गलत आचरण का
शिकार है
आँख बन्द कर
जो इस डगर पर चला
विश्वासघात के
दलदल में फंसा
हमने भी तभी जाना
झूठे प्यार में कुटनिती
मिली किस जन्म की
यह परणिती।
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