Sach सच

“सरोज इतनी सनकी है कि अक्सर सोचती हूंँ कि किस बुरी घड़ी में उस से परिचय कर बैठी,”… विनिता बोली

“उस समय शायद तुम्हें उचित लगा हो,”.. गीता बोली।

“हां, किंतु अब पछता रही हूँ,”.. आज विनीता का बहुत खराब मूड है।

“ऐसा नहीं कहते विनीता, समय की मार की वजह से वह विक्षिप्त व्यवहार करती है,”…समझाने की गरज से गीता बोली।

“इतनी पागलपन भरी बातें की लगने लगा है कि मैं भी पागल हो जाऊँगी, पता नहीं तुम कैसे झेलती हो उसे, उस पर पीछा भी नहीं छोड़ती है, मुझसे तो उससे स्पष्ट बोला भी नहीं जाता, क्या करूँ ?”… खिन्न हो गई विनीता।

“विनिता, परेशान मत हो, मेरा सोचना हमेशा यह रहता है कि जिस तरह कमल कीचड़ में खिलता है उसी तरह मैं भी दोस्तों में से कमल चुन लेती हूँ, उनकी व्यक्तिगत जिंदगी के मूल तत्वों में कभी उलझती ही नहीं, मुझे उनके विशेष गुणों से मतलब रहता है बस में अच्छा दोस्त अपनी तरह से निकाल लेती हूँ,”… गीता ने अपनी सोच को व्यक्त किया।

“कैसे कर पाती हो, मैं तो उसकी बातें सुनकर ही परेशान हो जाती हूँ,”…

“मैं उसकी बातें सुनती जरूर हूँ, पर दिमाग और दिल से उसी समय निकाल देती हूँ, क्योंकि वह मेरे काम की नहीं होती, और न ही उन पर मैं अपनी उर्जा खर्च करना चाहती हूँ, बहुत ही शांत रहकर सुनती हूँ, और वही कचरा छोड़कर निकल जाती हूँ,”…

“तुम उसे रोकती क्यों नहीं ? हर कोई उसकी फिजूल की बातें, उसकी जिंदगी के बातें बार-बार क्यों सुनेगा, थक गए हैं अब, बहुत सी बातें तो याद भी हो गई हैं,”…

“देखो विनिता, उसका एक निश्चित दायरा है, उससे उभर ही नहीं पाती है, हम इस बात को समझ रहें हैं तो, हमें ही उसकी इस कमी को समझना होगा,”… गीता ने तर्क दिया।

“हम ही क्यों झेले ?”…आज विनिता पूरी तरह से चिढ़ी हुई है

“विनिता, शांत हो जाओ, हमारी वह दोस्त हैं, हम मौकापरस्त तो नहीं हो सकते, अगर हम अपने दोस्त की परेशानी में उसे छोड़ देते हैं तो कैसे दोस्त हैं, हम उसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं तो सोचो कोई और क्यों करेगा, फिर इंसानियत के खातिर ही सही हम उससे, ओर उसकी कमजोरी से जुड़ेंगे, तभी तो हम उसकी इस कमी को दूर कर सकेंगे,”…गीता ने ज़िन्दगी का बेहतरीन सच रखा।

“मैं तुम्हारी सोच को नतमस्तक करती हूँ, मैं आज दोस्ती और इंसानियत के महत्त्व को समझ गई हूँ, तुम भटके दोस्तों को भी बड़े जतन से राह पर ले आती हो, तुमने तो सोच का रुख ही बदल दिया, सच तुम सा दोस्त पा कर आज मैं बेहतद खुश हूँ, “… मुस्कुराते हुए गीता उसके गले लग गई।

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