Gajal ग़ज़ल

छोड़ दो हमको फिर गुनगुनाते हुए
बस यूँही चार रस्में निभाते हुए।

कर रहे हो अदावत भला किसलिए
फिर रहे हो जो नज़रे चुराते हुए ।

गर्म बाज़ार है क्या ख़रीदोगे तुम
तुम को देखा है कीमत लगाते हुए।

बात छेड़ी है तुमने तो वो भी सुनो
बात बरसों फिरे जो छुपाते हुए ।

आज चाहो तो कर भी दो रुसवा हमें
हम मिले तुमको पलकें बिछाते हुए ।

सांस सीने में घुटती रही है सदा
हसरतों को सदा ही दबाते हुए।

वक्त की मार देखी कभी आपने
अच्छे अच्छों के सर को झुकाते हुए।

©A

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