अपना अक्स
तुझमें, मुझसा
ही दिखता
तुम भी शीतल
मैं भी शांत
उफनी हो तो
बिफरी हूँ मैं
चलती, बहती
रमती तुम सी
डूबती,उबरती
रुकती, सूखती
चटकती, दरकती
सम्हलती, सवरती
झुकती, उठती
ठिठकती,गुजरती
गिरती, सम्हलती
नदी, नाले ,सागर
पहाड़ों में रमती
जोगीन, तपस्या
चन्दन, तीलक सी
माथे पर सजती
बहती हूँ निरझर
ऐ सखी मैं हूँ
तुम सी नदी ही…
©A
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