Ye Jindagi ऐ ज़िन्दगी
ऐ ज़िन्दगी….
…आज सूरज की लाली मेरे कानों में चुपके से यह कह गई है कि तुम्हारी सखी सो रही है तुम कहो तो मैं उठा आऊँ, ….अपनी रेश्मी किरनों से उसके चेहरे को सहला आऊँ, ….अपनी मद्धिम रोशनी से उसकी आँखों में हल्क- हल्क उजाला भर आऊँ, ..और क्या मैं अपनी मदमस्त हवाओं से उसकी रेशमी जुल्फों को जरा सा सहला आऊँ,… तुम कहो तो.. हां हां तुम कहो तो… मैं अपनी उपस्थिति से थोड़ा सा गुदगुदा आऊँ, …फिर मैं उसकी मदमस्त अंगड़ाई पर थोड़ा सा खुश हो लू…और तुम्हें एतराज न हो तो कुछ देर उसी के पास बैठ जाऊँ, तुम कुछ कहो न……
चल हट नटखट… तू मेरी सखी को सोने दे, उसे अपनी यादों में खोने दे,… सपनों में बिचरने दे,… मदमस्त हो हरी-भरी वादियों में फुदकने दे,… किसी हरी भरी पहाड़ी पर खड़े होकर अपना धानी आंचल लहराने दे.. उसे जी भर के सुख को बटोरने दे,…. चल हट पगले अब तुम थोड़ी देर के लिए बदली में छुप जाओ….इस मासूम राजकुमारी को कुछ देर और सो लेने दो …..हे ईश्वर रहम कर पृथ्वी पर, तुम भी ऐ ज़िन्दगी कुछ देर और जी लेने दो……..
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